Book Title: Vanaspatiyo ke Swalekh
Author(s): Jagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
Publisher: Hindi Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 160
________________ अध्याय 16 आन वृक्ष का रुदन जब से मैंने फरीदपुर के विख्यात 'प्रार्थना करते हुए' ताड़ की काल्पनिक 'भक्तिपूर्ण क्रियाओं के निहित कारणों के अनुसन्धान की समाप्ति की, मुझे कई लोगों ने प्रारम्भ में अलौकिक प्रतीत होने वाली घटनाओं का समाधान करने का अनुरोध किया, जिससे मैं असमंजस में पड़ गया। प्रस्तुत मामले की अप्रत्याशित घटना कलकत्ते के एक उपनगर के एक आम्र वृक्ष के सर्वाधिक रुदन से सम्बद्ध है। ___ यह वृक्ष पूर्ण विकसित है और लम्बाई में लगभग 40 फुट है। इसके तने की परिधि 38 इंच है और असंख्य पत्तियों से लदी इसकी शाखाओं का विस्तार लगभग 100 वर्गगज के क्षेत्रफल में है (चित्र 81) / तथाकथित रुदन प्रति दिन ठीक 1 बजे अपराह्न में वृक्ष के ऊपरी भाग से बिना किसी प्रकार की प्रकट उत्तेजना के आरम्भ हो जाता है। प्रारम्भ में यह रुदन यथेष्ट रूप से होता है और हर दो सेकेण्ड बाद एक बूंद गिरती है। यह आवेग क्रमश: मन्द होता जाता है और बूंदों के गिरने के बीच का समय 2 बजे 5 सेकेण्ड, 3 बजे 8 सेकेण्ड, 4 बजे 15 सेकेण्ड और 5 बजे 150 सेकेण्ड हो जाता है। इसके बाद शेष दिन के लिए रुदन बन्द रहता है। इसी प्रकार यह कार्य प्रति दिन 1 बजे आरम्भ होता है और उसी क्रम से चलता है। यह रहस्यमयी घटना अशुभ मानी जाने लगी और आस-पास के मनुष्य भयग्रस्त हो गये। इस रहस्य का समाधान उन्होंने मुझसे पूछा और कहा कि यदि सम्भव हो तो मैं इस वृक्ष के इन दुःखद लक्षणों का उपचार करूं। प्रथम दृष्टि में ऐसा आभास हुआ कि 1 बजे दिन में रस का दाब किसी प्रकार से अकस्मात् बढ़ गया और इस प्रकार वृक्ष के ऊपरी भाग के किसी छेद से रस निकलने लगा। रस के दाब की घण्टेवार भिन्नता जब किसी वृक्ष के तने में रस का दाब अत्यधिक होता है, तो उसमें छेद करने से रस निकलता है। इसके विपरीत आन्तरिक दाब बाह्य वातावरण के दाब से कम हो सकता है / तब निकलने की जगह के स्थान पर छिद्र द्वारा जल अन्दर खींचा

Loading...

Page Navigation
1 ... 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236