Book Title: Vanaspatiyo ke Swalekh
Author(s): Jagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
Publisher: Hindi Samiti

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Page 230
________________ परिशिष्ट बोस संस्थान जीवन तरंग अपने अनुसन्धानों का अनुसरण करते हुए मैं अनजाने, भौतिकी और दैहिकी के सीमा क्षेत्र में पहुंच गया और जीव एवं निर्जीव के प्रदेशों के बीच रेखाओं को लुप्त होते और उनके बीच संस्पर्श के चिह्नों को उभरते हुए देखकर विस्मित हो गया। अकार्बनिक पदार्थ निष्क्रिय नहीं पाया गया। यह उन अगणित शक्तियों की, . जो उस पर क्रियाशील थीं, क्रिया का कम्पन भी था। धातु, वनस्पति और प्राणी, सब एक समान अभिक्रिया द्वारा एक ही नियम के अधीन थे। वे सब थकावट और अवसाद एवं साथ-साथ पुन रुन्नयन और उत्कर्ष की सम्भावना का भी प्रदर्शन करते थे, और उस स्थायी अनुक्रियाहीनता का भी जो मृत्यु से सम्बन्धित है। ___ जायमान विज्ञान की अनेक और सदा नूतन समस्याओं का और अधिक एवं विस्तृत अनुसन्धान, जिसमें जीव और निर्जीव दोनों ही सम्मिलित हैं, मेरी इस संस्था के, जिसका मैं आज उद्घाटन कर रहा हूँ, ध्येय हैं / यह समय कोई नया कार्य प्रारम्भ करने के अनुपयुक्त माना जा सकता है, जब मानव-नियति पर घोर विपत्ति की छाया मंडरा रही है। किन्तु ऐसे ही संकट में मनुष्य सत्य से असत्य का विभेद करना सीखते हैं, जिसमें वे सत्य का, जो शाश्वत है, अनुसरण करने में अपने आप को समर्पित कर सकें। दो आदर्श इस समय देश के सामने दो आदर्श हैं जो सम्पूरक हैं, न कि प्रतिरोधी। प्रथम है, सभी मामलों में सफलता प्राप्त करने, भौतिक दक्षता पाने और व्यक्तिगत आकांक्षा को सन्तुष्ट करने का वैयक्किक आदर्श / ये आवश्यक हैं, लेकिन केवल ये स्वयं देश का जीवन सुनिश्चित नहीं करते। इन भौतिक क्रियाकलापों का परिणाम हुआ है, अपार शक्ति और धन की प्राप्ति / विज्ञान के साम्राज्य में भी परिज्ञान का 1. 'बोस-संस्थान' के समर्पण-उद्घाटन-अभिभाषण से उद्धत, 30 नवम्बर 1917 /

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