Book Title: Vanaspatiyo ke Swalekh
Author(s): Jagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
Publisher: Hindi Samiti

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Page 232
________________ 214 वनस्पतियों के स्वलेख रहती है, वे अब तक उनके बीच न्यूनाधिक विभक्त रहीं हैं। प्रकृति के अध्ययन में एक द्वैत दृष्टिकोण-भौतिक अध्ययनों के साथ जैविक विचार की और जैविक अध्ययनों के साथ भौतिक विचार की प्रत्यावर्तित किन्तु लयबद्ध रूप में एकीकृत पारस्परिक क्रिया की आवश्यकता है। . भविष्य का वैज्ञानिक अपने भौतिकी के नूतन ज्ञान और “जीवन की संभावना तथा शक्ति से कम्पित" अकार्बनिक विश्व की पूर्णतर अवधारणा से, कार्य और विचार में दुगुनी शक्ति से कार्यशील होगा। इस प्रकार वह अपने पुरातन ज्ञान को महीन छलनी से छानेगा और उसका नयी उमंग से अधिक सूक्ष्म यंत्रों द्वारा अन्वेषण करेगा। उसकी इन यंत्रों की पकड़ तत्क्षण अधिक जानदार होगी, अधिक गतिक और अधिक व्यापक और अधिक एकीकृत होगी। इस संस्था का मुख्य ध्येय है--विज्ञान की उन्नति और ज्ञान का प्रसार / इस ज्ञान-गृह के अनेक कक्षों में से सबसे बड़े कक्ष, व्याख्यान-कक्ष में हम उपस्थित हैं। इस बृहत् सभा-भवन को बनाने में मेरा विचार स्थायी रूप से ज्ञान को वृद्धि को जनता में प्रसारित करने का रहा है / __ इसके लिए कोई शैक्षिक परिसीमा नहीं है। अतः यह सभी जातियों और भाषाओं, नर-नारियों और भविष्य के सब समयों के लिए है। अभी इन पन्द्रह सौ श्रोताओं के समक्ष जो भाषण दिये जायेंगे, उनमें जनता के सामने नये आविष्कारी का पहली बार प्रदर्शन होगा। इस प्रकार ज्ञान की वृद्धि और प्रसारण दोनों में सक्रिय भाग लेकर हम एक श्रेष्ठ ज्ञान-संस्था के उच्चतम आदर्श का सातत्य बनाये रखेंगे। मेरी एक और इच्छा है। जहाँ तक इस सीमित स्थान में सम्भव होगा, इस संस्था की सभी सुविधाएं, सभी देशों के कार्यकर्ताओं को उपलब्ध होनी चाहिये / हस कार्य में मैं अपने देश की परम्पराओं पर चलने का प्रयास कर रहा हूँ, जिन्होंने पचीस शताब्दी पहले भी शिक्षा की अपनी प्राचीन संस्थाओं--नालन्दा और तक्षशिला में विश्व के विभिन्न भागों से आने वाले विद्वानों का स्वागत किया। दृष्टिकोण इस विस्तृत दृष्टिकोण द्वारा हम न केवल प्राचीन परम्पराओं को बनाये रखेंगे, अपितु विश्व की सेवा उदात्ततर ढंग से कर सकेंगे। जीवन की समान तरगों के अनुभव तथा शिव, सत्य और सुन्दर के प्रति समान प्रेम का अनुभव करने में हम इसके साथ होंगे।

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