Book Title: Vanaspatiyo ke Swalekh
Author(s): Jagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
Publisher: Hindi Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 233
________________ परिशिष्ट 215 इस संस्था में, जीवन की इस अध्ययनशाला और उद्यान में, कला का अधिकार विस्मृत नहीं किया गया है, क्योंकि इस कक्ष में नींव से शिखर तक, फर्श से छत तक, कलाकार हमारे साथ कार्यशील रहा है। उस तोरण के आगे प्रयोगशाला अप्रत्यक्ष रूप से उद्यान में मिल जाती है, जो जीवन के अध्ययन के लिए यथार्थ प्रयोगशाला है। वहाँ लताएँ, पौधे और वृक्ष अपने स्वाभाविक पर्यावरण-सूर्यप्रकाश, वायु और नक्षत्र खचित अन्तरिक्ष के वितान के नीचे अर्धरात्रि के अति शीत से प्रभावित होते हैं। और भी परिवेश हैं, जहाँ वे विभिन्न प्रकार के प्रकाश से लेकर अदृश्य किरणों तक तथा विद्युत-प्रभृति वातावरण की वर्णीय (Chromatic) क्रिया से प्रभावित होंगे। वे सर्वत्र स्वतःलेख द्वारा अपने अनुभव का इतिहास लिखेंगे। वृक्षों की छाया में अपने अवलोकन के उच्च बिन्दु से छात्र जीवन का यह दृश्य देखेगा। सब ध्यानापकर्षणों से दूर, वह प्रकृति के स्वर में अपना स्वर मिलायेगा; अन्धकार का आवरण उठ जायगा और वह क्रमशः देखेगा कि किस प्रकार बृहत् जीवन-जगत् में ऊपर से दिखाई पड़ने वाली असमानता की अपेक्षा संगठन कितना अधिक है। विरोध में उसे सामंजस्य का आभास होगा। अनेक पिछले वर्षों से, मेरे जाग्रत जीवन के चारों ओर ताना-बाना बनने वाले ये ही मेरे स्वप्न हैं / दृष्टिकोण अनन्त हैं क्योंकि उद्देश्य अपरिमित हैं। किसी एक व्यक्ति अथवा निधि के माध्यम से संपूर्ण सफलता नहीं मिल सकती, अनेक व्यक्तियों और अनेक निधियों के सहयोग की आवश्यकता है, साथ ही पूर्ण विस्तार की सम्भावना विशाल सम्पत्ति पर ही निर्भर रहेगी। किन्तु प्रारम्भ तो करना ही चाहिये और इस संस्था की नींव का यही आधार है। मैं कुछ लेकर नहीं आया और न कुछ लेकर जाना है। यदि इस अन्तराल में कुछ प्राप्त कर सकूँ, तो यह वस्तुतः मेरे लिए गौरव की बात होगी। जो कुछ मेरे पास है वह मैं समर्पित करूंगा; और उसने (पत्नी) भी, जिसने मेरे साथ सब संघर्षों और कठिनाइयों में जो कुछ भी सहना पड़ा था, सहा, जो कुछ उसके पास है, इसी उद्देश्य से समर्पित करने की इच्छा प्रकट की है। व्यापक संश्लेषण आधनिक विज्ञान में अत्यधिक विशेषज्ञता के कारण इस आधारभूत तथ्य को भूल जाने का खतरा पैदा हो गया है कि केवल एक ही सत्य, एक ही विज्ञान हो सकता है, जिसमें ज्ञान की सब शाखाएँ सम्मिलित हैं। प्रकृति में घटित होने वाली घटनाएँ कितनी अव्यवस्थित दिखती हैं ? क्या प्रकृति वह ब्रह्माण्ड है जिसमें एक दिन /

Loading...

Page Navigation
1 ... 231 232 233 234 235 236