Book Title: Vanaspatiyo ke Swalekh
Author(s): Jagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
Publisher: Hindi Samiti

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Page 229
________________ तंत्रिका-आवेग और संवेदना का नियंत्रण 211 खिलौना मात्र नहीं है / एक ऐसी शक्ति उसमें छिपी हुई है, जो उसे उसके आसपास के विद्वेषी वातावरण के भय से बचायेगी। जिन वाहिनियों से बाह्य संसार का परिचय उसे होता है, उन्हें वह स्वेच्छापूर्वक विस्तृत करे या बन्द, यह शक्ति उसमें रहेगी। इस प्रकार अब तक उसके लिए जो अस्पष्ट संवाद अप्रतिबोधित थे, उन्हें जानना उसके लिए सम्भव हो जायगा या वह अपने आप में सिमट जायगा, जिससे उसके आन्तरिक राज्य में विश्व का कर्कश स्वर और उसका कोलाहल उसे प्रभावित नहीं कर सकेगा। वनस्पति से प्राणी तक जीवन के आरोह के लम्बे सोपान का हमने अनुगमन किया / प्राणोत्सर्ग करने वालों की उच्च आध्यात्मिक विजय में, साधु के आह्लाद में, हम उस उच्चतर और उच्चतम विकास प्रक्रिया की अभिव्यक्ति पाते हैं, जिसके द्वारा जीवन पर्यावरण की सब परिस्थितियों से ऊपर और परे उठ जाता है, और उन पर नियंत्रण करने के लिए अपने को दृढ़ बनाता है। पदार्थ की पुलक, जीवन की धड़कन, वृद्धि का स्पन्दन, तंत्रिका में प्रवहमान प्रेरणा और परिणामी संवेदना, ये कितनी भिन्न हैं, फिर भी कितनी समान। यह कितना आश्चर्यजनक है कि चेतनामय पदार्थ में उत्तेजना का कम्पन केवल पारेषित नहीं होता, बल्कि रूपान्तरित और परावर्तित भी होता है, उसी प्रकार जैसे दर्पण में छाया। जीवन के भिन्न तलों पर यह संवेदना, स्नेह, विचार और गति के रूप में प्रतिबिम्बित है। इनमें से कौन अधिक सत्य है-भौतिक शरीर, या इससे स्वतंत्र छाया ? इनमें कौन अक्षय है और कौन मृत्य की पहुँच के परे है ? अतीत में बहुत-से राष्ट्रों का उदय हुआ और उन्होंने विश्व-साम्राज्य स्थापित किया। उन लोकिक शक्ति धारण करने वाले राजवंशों के स्मारक केवल कुछ मिट्टी में दबे हुए टुकड़े हैं। फिर भी, एक ऐसा तत्व भी है जो पदार्थ में अवतरित होता है, किन्तु उसके बाद रूपान्तर और स्पष्ट विनाश के परे हो जाता है। यह विचार से उत्पन्न जाज्वल्यमान ज्योति है. जो युग-युग से पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रज्वलित होती चली आ रही है। पदार्थ में नहीं, अपितु विचार में, स्वत्व में नहीं और उपलब्धि में भी नहीं, 'अपितु आदर्शों में अमरत्व के बीज पाये जा सकते हैं।

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