Book Title: Vanaspatiyo ke Swalekh
Author(s): Jagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
Publisher: Hindi Samiti

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Page 188
________________ 170 वनस्पतियों के स्वलेख . हैं। पौधा प्रकाश का इतना संवेदनशील खोजी है कि उसे आकाश के प्रकाश की तीव्रता की अल्पतम भिन्नता का पता लगाने के लिये ज्योतिर्मापी (Photometer) के रूप में काम में लाया जा सकता है। मैं एक ऐसी योजना में सफल हुआ जिसके द्वारा जैसे ही आकाश का प्रकाश किसी गतिमान कोहरे से अवरुद्ध होने के कारण मन्द होता है, पौधा एक विद्युतबटन को प्रेरित कर बत्ती जलाता है। जैसे ही आकाश स्वच्छ होता है, बटन से बत्ती बुझ जाती है / लन्दन में शीतकाल में यह योजना कार्यशील हो सकती है। इससे भी अधिक रोचक है, विद्युत् चुम्बकीय अभिलेखक का ढोल पर क्रमिक बिन्दुओं के रूप में स्वतः अभिलेख / परिपाचन की गति जब बढ़ती है बिन्दु अधिक पास हो जाते हैं। परिपाचन में गिराव का पता बिन्दुओं के दूर-दूर होने से लगता है। परिपाचन की घंटेवार भिन्नता दिन के किस समय पौधा सबसे अधिक तीव्रता से कार्बन, डाइआक्साइड का परिपाचन करता है, इसका निश्चय करने के लिए मैंने 7-30 प्रातः से 5 बजे संध्या तक का प्रत्येक 5 मिनट का क्रमिक अभिलेख लिया। जब सूर्य प्रातः 6-45 बजे उदय हुआ, प्रकाश प्रभावी होने के लिए अति मन्द था। प्रातः 7-30 बजे परिपाचन प्रारम्भ हुआ और पांच मिनट में पौधे द्वारा चार बुद्बुद निष्कासित किये गये। जैसेजैसे दिन बढ़ता गया, यह अधिक भूखा होता गया और 1 बजे अपराह्न में इसने प्रातः से चार गुना कार्बन डाइआक्साइड लिया। यह बात कितनो विस्मयकारी है कि हमारे भोजन के समय ही पौधा भी अधिकतम भूखा हो! एक बजे अपराह्न के बढ़े हुए परिपाचन का यथार्थ कारण प्रकाश और तापमान की अनुकूल अवस्थाएँ हैं / अपराह्न में यह सक्रियता घट गयी और अंधकार के आते ही अवरुद्ध हो गयी। (चित्र 103) / परिपाचन पर उद्दीपना का प्रभाव जैसे खाद्य का परिपाचान निश्चय ही एक जीवनावश्यक प्रक्रिया है, वैसे ही अत्यधिक उद्दीपना द्वारा उत्तेजना बहुत ही अहितकर प्रमाणित हो सकती है। इस प्रकार जो पौधा साक्रियतापूर्वक परिपाचान कर रहा था और द्रुतगति से घंटी बजाकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रहा था, तीव्र विद्युत् आघात पाकर अकस्मात् ही अवसादित हो गया। यह अपने खाद्य से यथेष्ट समय तक अलम रहा, जैसा कि घंटी के बजने के रुकने से पता लगा। जितनी ही तीव्र उद्दीपना होती है उतनी ही देरी तक परिपाचन रुका रहता है / इससे हमें यह स्पष्ट शिक्षा मिलती है कि भोजन

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