Book Title: Vanaspatiyo ke Swalekh
Author(s): Jagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
Publisher: Hindi Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 220
________________ 202 वनस्पतियों के स्वलेख इन प्रतिवर्तनों के समय-सम्बन्ध के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि संवेदी आवेग के स्थूलाधार तक पहुँचने और प्रेरक आवेग के वहाँ से चलने का अन्तराल निश्चित रूप से कई सेकेण्ड का होता है। प्रतिवर्तन में यह लुप्त समय है ; यह स्थूलाधार में आवेग के अभिवाही से अपवाही तंत्रिका होने का अंतःकालीन समय है। इससे ज्ञात होता है कि बीच में कोई रोध या बाधा है जिसे इसको हटाना पड़ता है। प्राणी में भी समान अवस्थाएँ होती हैं, यह विदित है। यहाँ बाधा को कुचला (Strychnine) द्वारा पूर्णतः हटा दिया जाता है। मैंने पाया कि लाजवन्ती पर भी कुचला का समान प्रभाव पड़ता है। भेषज के मिश्रित घोल की एक मात्रा द्वारा बाधा पूर्णरूप से हट गयी। निष्पादन केन्द्र प्राणी के संवेदी और प्रेरक आवेगों में अनिवार्य भिन्नता यह है कि एक केन्द्र की ओर जाता है और दूसरा केन्द्र से बाहर की ओर। यह कहना असम्भव है कि वे समान या भिन्न गति से जाते हैं। वनस्पति में दोनों गतियों का माप करना अधिक सरल है और यह एक विस्मयकारी तथ्य है कि बाहर जाने वाला प्रेरक आवेग, दोनों में से द्रुततर है। साधारणतया तंत्रिका-आवेग जैसे-जैसे दूर जाता है, उसकी गति घटती जाती है, और ऐसा सोचा जा सकता है कि संवेदी आवेग के केन्द्र में पहुँचते ही उसकी गति बन्द हो जाती है / क्योंकि इसको अधिक दूर जाना रहता है और इसे उलट कर पर्णवृन्त की लम्बाई का दुगुना चलना पड़ता है। किन्तु मेरे अनुसन्धानों से पता चलता है कि बाहर जाने वाले प्रेरक आवेग की गति, भीतर आने वाले संवेदी आवेग की गति से कम से कम छः गुनी है / प्रतिवर्त चाप में संवेदी आवेग का प्रेरक आवेग में परिवर्तन केवल संचरण-दिशा के उलटने का ही सूचक नहीं है, बल्कि केन्द्र में ऊर्जा का अत्यधिक निस्सारण (Discharge) होता है, जिससे मन्द संवेदी आवेग द्वारा उत्तेजित प्रेरक आवेग उससे कहीं अधिक तीव्र हो जाता है। इस प्रकार ज्ञात होता है कि केन्द्र का एक विशिष्ट निष्पादन-कार्य होता है और वहाँ यथेष्ट मात्रा में ऊर्जा संचित रहती है। संवेदी आवेग केन्द्र पर पहुंचकर एक बटन खींचता है और इसके परिणामस्वरूप प्रेरक आवेग का निस्सारण प्रायः विस्फोटक तीव्रता और द्रुतता का होता है। अब यह दिखाया जायगा कि प्रेरक आवेग का मख्य कार्य आसन्न संकट का सामना करने के लिए बाह्य भाग के अंगों का समयोजन है / इसको सदा अनवरत रूप से सतर्क रहना पड़ता है, और सामान्य आवश्यकता पर तत्काल क्रियाशील होना पड़ता है। क्योंकि असामञ्जस्य से वनस्पतिराष्ट्रमण्डल का विनाश हो सकता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236