Book Title: Vanaspatiyo ke Swalekh
Author(s): Jagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
Publisher: Hindi Samiti

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Page 225
________________ तंत्रिका-आवेग और संवेदना का नियंत्रण 207 पर निर्भर रहती। इस प्रकार संवेदना का आपरिवर्तन असम्भव होता / किन्तु सम्भव है कि तंत्रिका की संवाहन-शक्ति स्थिर न होकर परिवर्तनशील हो, जिससे आवेग की गति का रोध बढ़ाया-घटाया जा सकता हो / यदि यह अनुमान ठीक है, तब हम इस महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष पर पहुंच सकेंगे कि संवेदना स्वयं आपरिवर्तनशील है, चाहे बाह्य उद्दीपना कुछ भी हो। __इन दोनों रीतियों द्वारा तंत्रिका-आवेग के आपरिवर्तन का प्रयत्न किया जा सकता है। प्रथम, हम तंत्रिका के मार्ग को संवाही बना दें जिसमें मन्द उद्दीपना का आवेग संवेदित हो सके। द्वितीय, तंत्रिका को असंवाही बनाकर तीव्र आघात के कष्टकर आवेग का अवरोध कर सकते हैं। निश्चेतक (Narcotic) द्वारा तंत्रिका असंवाही हो जाती है और इस प्रकार हम पीड़ा से बच सकते हैं / किन्तु ऐसा साहसिक कार्य चरम परिस्थितियों में ही किया जा सकता है, जैसे, जब हम शल्यचिकित्सक की छुरी के नीचे हों। यथार्थ जीवन में हमें अप्रत्याशित, अरुचिकर बातों का सामना करना ही पड़ता है / एक टेलीफोन वाले को यह सुविधा है कि जब संवाद अरुचिकर हो, वह उसे बन्द कर दे / राजनीतिज्ञों का सुविधानुसार बधिर हो जाना विख्यात है। किन्तु यह केवल कहने भर की बात है, क्योंकि अरुचिकर बातें चुभती तो रहती ही हैं। कम ही व्यक्ति हरबर्ट स्पेन्सर की तरह साहसिक होंग जो मेहमान के अरुचिकर होने पर कानों में खुल्लम-खुल्ला डाट लगा लें। तंत्रिका का आणविक पारेषण तंत्रिका के संग्राही बाह्य अग्रभाग की उद्दीपना द्वारा जो रोमांच होता है, वह एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक भीतर की ओर आणविक विक्षोभ के रूप में संवाहक तन्तु पर भेजा जाता है। कल्पना कीजिये. बिलियर्ड के कुछ गेंद एक कतार में रखे हैं। प्रथम गेंद पर आघात देने से एक के बाद दूसरे पर उसका प्रभाव जायगा, जब तक कि अन्तिम गेंद उस आघात को स्वीकृत करने के कारण पृथक नहीं हो जाता। कोई दूसरा गेंद अपने स्थान से हटता नहीं दिखाई पड़ता। इसी प्रकार तंत्रिका का प्रत्येक कण यद्यपि अपने स्थान पर बना रहता है, किन्तु आवेग का संवाहन करता रहता है। यह स्पष्ट है कि संवहन आवेग भेजने वाले कणों की चरता पर निर्भर है। कल्पना कीजिये, तंत्रिका के समान उद्दीपना में दो क्रमिक पारेषण हों। यदि किसी उपाय से कणों की चरता बढ़ायी जा सके तो आवेग द्रुत हो जायगा और उसकी

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