Book Title: Vanaspatiyo ke Swalekh
Author(s): Jagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
Publisher: Hindi Samiti

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Page 218
________________ 200 वनस्पतियों के स्वलेख इस प्रश्न पर अनुसन्धान करने के लिए बायीं तरफ वाले अधः पर्णवृन्त में उद्दीपना दी गयी और क्रमशः उसे धीरे-धीरे बढ़ाया गया। इसकी सामान्यतम और सबसे सरल रीति है, कुंडली द्वारा विद्युत्-आघात की तीव्रता को बढ़ाना। जब उद्दीपना मन्द या सामान्य होती है, जैसा कहा जा चुका है, अनुक्रिया बायीं ओर की ऐंठन-क्रिया द्वारा प्रदर्शित होती है। किन्तु जब उद्दीपना की तीव्र ता. बढ़ा दी जाती है, एक नूतन घटना घटित होती है। हम बायें अधः पर्णवृन्त पर दी गयी सामान्य तीव्र उद्दीपना द्वारा घटित आवेग का अनुगमन करेंगे। अधः पर्णवृन्त के भीतर उत्तेजना का मार्ग पर्णो के ऊपर से बन्द होने के क्रम में दृष्टिगोचर होता है। स्वाभाविकतथा विस्तृत पत्तियाँ : ऊपर से देखने में चमकीली हरी दीखती हैं। आवेग के घुसने के चित्र ११६-प्राणी में प्रतिवर्त-क्रिया का आरेख। बाद बन्द पत्तियों में अस्पष्ट धूसर रेखा रह जाती है। जब आवेग अधः पर्णवृन्त के लघु स्थूलाधार तक पहुंचता है, उसे उसके साथी दूसरे अधः पर्णवृन्त की ओर घुमाया जाता है। तब आवेग मुख्य . अध: पर्णवृन्त तक पहुँच जाता है और कुछ देर के लिए इसके जाने का कोई चिह्न नहीं दिखाई देता। कुछ देर बाद स्थूलाधार तक इसका पहुँचना पर्णो के गिरने से ज्ञात होता है। अभिवाही या भीतर जाने वाली प्रेरणा का पर्ण के स्थलाधार तक पहुँचने का समय अति आन्तरिक पत्तियों के युग्म के बन्द होने और पर्ण के गिरने के अन्तराल का अवलोकन करने से निश्चित होता है। अभिवाही आवेग का कार्य यहीं नहीं समाप्त होता। क्योंकि यह आवेग अब स्थूलाधार में जाकर अपवाही प्रेरणा में बदल जाता है और विपरीत दिशा में दूसरे मार्ग पर चलता है। अपवाही आवेग परिमा (Periphery) पर पहुँच जाता है। इसके प्रसरण की विपरित दिशा द्वितीय अधः पर्णवृन्त की पत्तियों के क्रम से बाहर की ओर बन्द होने से ज्ञात होती है (चित्र 120) / अतः तह स्पष्ट है कि लाजवन्ती के पर्ण में एक प्रतिवर्त चाप है / अभिवाही तंत्रिका को संवेदी और अपवाही तंत्रिका को प्रेरक कह सकते हैं। द्वितीय अधःपर्णवृन्त की भीतरी पत्तियों के युग्म के बन्द होने और पर्ण के शिरले के अन्तराल के माप द्वारा प्रेरक निका-आवेग की गति का पता चलता है।

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