Book Title: Vanaspatiyo ke Swalekh
Author(s): Jagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
Publisher: Hindi Samiti

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Page 216
________________ 168 वनस्पतियों के स्वलेख . ऐसा ही होता है / अधः पर्णवृन्त 1 और 4 जो बाहर रहता है, उसके द्वारा सम्पूर्ण पर्ण का पार्श्वतः समायोजन होता है। दोनों मध्य अधः पर्णवन्तों द्वारा पारेषित तंत्रिका-उत्तेजना की अभिक्रिया द्वारा ऊपर और नीचे की सन्तुलित समायोजना होती है। यह स्पष्ट है कि साम्यावस्था तभी सम्भव है, जब अधः पर्णवृन्तों पर पत्तियों से पूर्ण पर्ण-तल समान रूप से प्रकाशित हो, और यह तभी हो सकता है जब पर्ण का . . सम्पूर्ण तल आपाती प्रकाश की सीध में हो। इस प्रकार स्थूलाधार में दूरी पर चार प्रेरक चतुष्कोण, जो पत्तियों के प्रतिबोधी स्थान पर चार तंत्रिका-आवेगों द्वारा प्रेरित होते हैं, उनके समन्वित प्रभाव से पर्ण अन्तरिक्ष में समायोजित होता है। इस प्रकार चार भाई हैं; सब सूर्य-प्रेमी, जो भी सूर्य-प्रकाश हो, उसको बाँटने के लिए प्रतिज्ञा किये हुए, किन्तु प्रत्येक को सम्पूर्ण गति के लिए पृथक् खिंचाव होता है / कल्पना कीजिये कि वे अपना चेहरा आकाश की ओर करके लेटे हैं। पूर्व में उदय होता हुआ सूर्य एक ऐसी किरण फेंकता है जो दाहिने वाले भाई पर पड़ती है। वह तत्काल स्थूलाधार के अपने चतुष्कोण को एक सन्देश भेजता है / चतुष्कोण दाहिनी तरफ़ ऐंठता है और इस प्रकार न केवल उस संवाददाता चर को, जो सन्देश लाता है बल्कि सम्पूर्ण वृन्द को सूर्य की ओर घुमा देता है। यदि पर्ण दूर तक झूल जाता है तो संख्या 4 का स्काउट दूसरी तरफ उसे खींचकर मामले को ठीक कर लेता है। अन्ततः सूर्य देवता ही तो पृथ्वी पर की सारी गति और सभी प्राणियों के स्रोत हैं / वही हमें प्रतिदिन शय्या से खींचकर उठाते हैं, वही भूमध्य रेखा से जल खींचकर हिमालय के शिखर पर पहुंचाते हैं, हमारी नदियों को बहाते हैं और वायु को गतिमान् बनाते हैं / इस विराट् शक्तिशाली कार्य में वह क्षुद्रतम पर्ण को भी भूलते नहीं। उस पर वह अवरोहण करते हैं, उसे अपना रथ बनाते हैं। पर्ण की चारों तंत्रिकाएँ उनके रथ की रास हैं, जिनके मार्ग-दर्शन में रथ ऊपर उठता है या नीचे जाता है या दाहिनी अथवा बायीं ओर झुकता है /

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