Book Title: Vanaspatiyo ke Swalekh
Author(s): Jagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
Publisher: Hindi Samiti

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Page 214
________________ 196 वनस्पतियों के स्वलेख की ओर द्रुत गति होती है। इन चारों चतुष्कोणों की पेशी रूपी प्रतिक्रियाओं द्वारा चारों पर्णवृन्तों की पत्तियाँ चार पताकाओं की तरह लगती हैं। यदि चारों पर्णवृन्तों की हरी पत्तियाँ प्रकाश से छिपाने के लिए ढक कर रखी जायँ और यदि पूर्व से सूर्यप्रकाश दाहिने चतुष्कोण 4 पर पड़ता है तो संपूर्ण पर्ण दाहिनी ओर मुड़ जाता है और चित्र ११८--चार अधः पर्णवृन्तों से स्थूलाधार तक चार तंत्रिकां-वलयकों का मार्ग (सामान्य लाजवन्ती)। निम्नस्थ चित्र अपने चारों चतुष्कोणों के साथ स्थलाधार का आरेखी अनुभाग है। चतुष्कोण 1 और 4 का, जिसके द्वारा बायीं और दाहिनी ऐंठन होती है, कम से अधः पर्णवन्त 1 और 4 से तंत्रिका-सम्बन्ध है / निम्न प्रभावी 2 अषः पर्णवृन्त 2 से संयुक्त है, इसकी अनुक्रिया द्रुत अवरोही-गति है। ऊपरी चतुष्कोण 3 अषः पर्णवन्त 3 से संयुक्त है, इसकी अनुक्रिया है मन्द आरोही गति / अवलोकन करने वाला मूल तने की ओर देख रहा है। अपने साथ चारों अधः पर्णवृत्तों पर लगी पत्तियों को भी ले जाता है। ऐसा लगता है मानो अदृश्य सूर्य की ओर मुड़ने के लिए। दूसरी तरफ, यदि पश्चिम से सूर्य का प्रकाश पार्श्व में बायें चतुष्कोण पर पड़ता है तो मोड़ उलट जाता है और पत्तियाँ पश्चिम की ओर हो जाती हैं। यह तो हुई प्रकाश द्वारा चर अंग की प्रत्यक्ष उद्दीपना से मोड़ की ऐंठन की मति / किन्तु स्वाभाविक स्थिति में स्थूलाधार पर पत्तियों की छाया के कारण प्रत्यक्ष प्रकाश नहीं पड़ता। जब चर अंग को प्रत्यक्ष उद्दीपना नहीं मिलती, तब किस प्रकार पर्ण प्रकाश की ओर घूमता है ? .. ____ इससे अधिक सहज क्या हो सकता है ? पत्तियों द्वारा प्रेषित संवाद से स्थिति का ज्ञान स्थूलाधार को हो जाता है।

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