Book Title: Vanaspatiyo ke Swalekh
Author(s): Jagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
Publisher: Hindi Samiti

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Page 217
________________ . अध्याय 26 वनस्पति में प्रतिवर्त चाप (Reflex Arc) की खोज जब कोई शिशु अपनी अंगुली आग की ज्वाला पर रखता है तो इसके पहले कि वह रुदन करने की सोचे, उसकी बाँह स्वत: लौट आती है। यह एक अदभुत प्रतिवर्त यंत्र-रचना का कार्य है। जलने की तीव्र उद्दीपना द्वारा एक अन्दर जाने वाला संवेदनात्मक अथवा अभिवाही आवेग होता है / यह प्रेरणा तंत्रिका केन्द्र में पहुंचकर प्रतिवर्तित होकर बाहर जाने वाले प्रेरक अथवा अपवाही आवेग में रूपान्तरित हो जाती है। यह आवेग एक नये मार्ग पर चलता हुआ हाथ को तत्काल हटा लेता है जो स्वैच्छिक और स्वतःक्रिया है। लन्दन में मेरे एक भाषण के समय देर से आने वाला एक व्यक्ति यह देखकर कि सब स्थान भर गये हैं, एक ऐसे स्थान पर बैठ गया, जिसे उसने एक उठा हुआ आसन समझा था, और तत्काल कूद पड़ा। वह एक ऊष्मा जल-नली थी। यह प्रतिवर्त-क्रिया का पूर्वाभ्यास-रहित प्रयोग था। .. तंत्रिका-केन्द्र में प्रतिवर्त चाप का एक रेखाचित्रीय निरूपण चित्र 116 में दिया गया है। यह एक तीव्र उद्दीपना है जो चर्मतल पर प्रहार करती है, संवेदी तंत्रिका अभिवाही आवेग 'A' को नाडीकेन्द्र 'NC' तक ले जाती है। यह आवेग अब अपवाही प्रेरणा 'E' के रूप में प्रतिवर्तित हो जाता है, और प्रेरक संदेशतंत्रिका द्वारा भेजा जाता है, जिससे अन्तिम पेशी 'M' का संकुचन होता है। अभिवाही और अपवाही, दोनों तंत्रिकाएँ यद्यपि भिन्न हैं, तथापि एक साथ रहती हैं और इन्हें मिश्रित-तंत्रिका कहा जाता है। ... मैने लाजवन्ती के पर्ण में एक समानान्तर विन्यास की खोज की है। यह दिखाया जा चुका है कि चार वाहिनी-बंडल हैं, जिनके द्वारा चारों अधः पर्णवृन्तों का स्थूलाधार से तंत्रिका-सम्बन्ध है। विद्युत-शलाका द्वारा अन्वेषण करके देखा गया है कि प्रत्येक बडल में दो तंत्रिका-वलयक होते हैं--एक बाह्य दूसरा आन्तरिक, और इसलिए अपेक्षया अधिक सुरक्षित / चयनात्मक अभिरंजन द्वारा भी प्रत्येक बंडल में दो तंत्रिका-वलयकों का होना प्रमाणित हुआ है। इस दोहरी व्यवस्था का क्या उद्देश्य है ?

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