Book Title: Vanaspatiyo ke Swalekh
Author(s): Jagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
Publisher: Hindi Samiti

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Page 203
________________ तंत्रिका का स्थान-निर्धारण 185 तरह है। केबुल में केवल एक ही संवाहक हो सकता है, या दो संवाहक हो सकते हैं। हम गैलवनामीटर से उपयुक्त रूप में संयुक्त एक धातविक सुई चुभोकर जाते हुए SHA POORDO S RE ANDHASTALEVANAMA A DSitaManovinitETIMIREERSEASTERSTAGreatime H NIRR ESEARRESS Rog DHAMus-BSI MADHNEETIRESTHA RWARESHARINATHMANJAPANINMENx EC S x po' . चित्र ११२-एक ही वाहिनी-बंडल के तिर्यक् और क्षतिज अनुभाग / बायाँ चित्र-तिर्यक अनुभाग / बिन्दुमय उदग्र रेखा वैद्युतशलाका - कामात का मार्ग दिखाती है। (C), बाह्यक; (s'), दृढ़ कोशाभित्ति; (P), बाह्य फ्लोएम, (X), दारु; (P), आन्तरिक फ्लोएम; 0, मध्यक। दाहिना चित्र--बंडल का क्षतिज अनुभाग / बाह्य और आन्तरिक दोनों फ्लोएम में लम्बित नाल के आकार की कोशिकाओं पर ध्यान दीजिये (अनुभाग बंडल के एक पार्श्व से गया है, मध्य से नहीं। संवाद को सुन सकते हैं / जब तक सुई संवाहक को नहीं छूती, कोई संवाद नहीं सुना जा सकता; सुई चुभने की दूरी संवाही पट्ट की गहराई बताती है। इस सिद्धान्त पर काम करता हुआ मैं पिछले अध्यायों में उल्लिखित विद्यतशलाका द्वारा तंत्रिका-रहित ऊतक में जमी हुई तंत्रिका का स्थान निर्धारण करने में सफल हुआ / लाजवन्ती के अनुपर्ण-वृन्त के दूरस्थ छोर को समय-समय पर उत्तेजित किया जाता है, और तभी पर्णवृन्त में थोड़े अन्तराल से, जैसे एक बार में 0.05 मि० मी० पर, शलाका चुभायी जाती है। प्रारम्भ में तंत्रिका-आवेग को बताने वाला कोई विद्युत्-परिवर्तन नहीं पाया गया / हमें और अधिक गहराई तक शलाका चुभाने

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