Book Title: Vanaspatiyo ke Swalekh
Author(s): Jagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
Publisher: Hindi Samiti

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Page 195
________________ पौधे को तंत्रिका . - 177 यह प्रमाणित हुआ कि उद्दीपना का संवाहन हुआ ही नहीं, और वह जिस बिन्दु पर दिया गया था, वहीं रुक गया। यह प्रमाणित करने के बाद कि उत्तेजना का पारेषण न जल-यांत्रिक है, न रस की गति के कारण होता है, मैं यह प्रमाणित करने के लिए साक्ष्य उपस्थित करूँगा कि पौध में संवाहन प्ररसीय उत्तेजना का संचरण है, ठीक उसी प्रकार जैसे प्राणी की उत्तेजित तंत्रिका में होता है। तंत्रिका-आवेग के लिए परीक्षण यह स्पष्ट है कि पाइप के भीतर जल की यांत्रिक गति पर गर्मी या सर्दी का एक उचित सीमा तक कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। पाइप को यदि निश्चेत किया जायगा, तो वह अचेत होकर जल के प्रवाह को रोकेगा नहीं और उसके चारों तरफ विष से आचूषित पट्टी लपेटने से उसकी संवाहन शक्ति भी नष्ट न होगी। ये अभिकारक तंत्रिका-उत्तेजना के पारेषण को अत्यधिक प्रभावित करेंगे। आवेग का स्वभाव, चाहे वह यांत्रिक हो या तंत्रिका, कतिपय निर्णायक परीक्षाओं द्वारा विभेदित किया जा सकता है। यदि दैहिक परिवर्तन संवाहन की गति को प्रभावित करता है, तब आवेग तंत्रिका-सम्बन्धी होता है। ऐसे किसी प्रभाव का न होना आवेग के यांत्रिक होने का प्रमाण है। तंत्रिका-आवेग को घटाना या रोकना विभिन्न दैहिक उपायों द्वारा सम्भव है, किन्तु इनका प्रभाव यांत्रिक आवेग पर नहीं होता। इनमें से कुछ निम्नोक्त हैं (1) जब संवाहक ऊतक या तंत्रिका शीतल हो जाती है, आवेग की गति मन्द हो जाती है और अन्त में रुक जाती है / (2) विषमय घोल द्वारा तत्रिका की संवाहन शक्ति सदा के लिए विनष्ट हो जाती है। (3). संवाहन शक्ति कुछ देर के लिए एक बाधा द्वारा रुक सकती है। इस .बाधा की उत्पत्ति, जिस तंत्रिका द्वारा आवेग का पारेषण होता है, उसी के एक भाग में विद्युत्-धारा के जाने से होती है। धारा को रोक देने पर यह विद्युत-बाधा हट जाती है। आवेग के वेग का माप ये परीक्षाएँ पहले स्वाभाविक अवस्थाओं में आवेग के वेग का स्वतः निर्धारण करके की जाती हैं और तब उन अन्य अवस्थाओं में, जो प्राणी को तंत्रिका

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