Book Title: Vanaspatiyo ke Swalekh
Author(s): Jagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
Publisher: Hindi Samiti

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Page 200
________________ 182 वनस्पतियों के स्वलेख यह तो भली-भाँति ज्ञात है कि प्राणी की तंत्रिका पर विद्युत्-धारा का विशिष्ट उत्तेजक प्रभाव होता है। अकस्मात ही तंत्रिका के बीच से एक धारा भेजने चित्र १०६-पारेषित उत्तेजना, बाधा के साथ, या बाधा रहित का अभिलेख ऐलेक्ट्रानिक बाधा (B) 'B' द्वारा पारेषित उद्दीपना की समाप्ति / पर उत्तेजना तंत्रिका के उस बिन्दु पर होती है जहाँ ऋणाग्र (Kathode) है, अर्थात् वह स्थान जहाँ धारा ऊतक से पृथक् होती है। अकस्मात् धारा को रोकने पर उत्तेजना स्थानान्तरित होकर धनाग्र (Anode) पर चली जाती है, जहाँ धारा ऊतक में प्रविष्ट होती है। उत्तेजना स्थानीय नहीं होती बल्कि कुछ दूर तक संवाहित होती है, जैसा कि अन्तिम पेशी के संकुचन से ज्ञात होता है। इसी के समान परिणाम लाजवन्ती और दूसरे संवेदनशील पौधों में मिलता है। मैं सामान्य पंक्तिपत्र (चित्र 110) में प्रेक्षित इन प्रभावों का रेखाचित्र प्रस्तुत करूँगा, बायें चित्र में ऋणान-बिन्दु पर धारा के आरम्भ में उत्तेजना का प्रदर्शन है। यह धारा दोनों दिशाओं में संवाहित हुई / जब पत्तियाँ पुनर्जीवित हुई, परिपथ (Circuit) भग्न हो गया और उत्तेजना धनान-बिन्दु पर स्थानान्तरित हो गयी। उत्तेजना, प्राणी और वनस्पति दोनों में ऋणाग्र-निर्माण और धनाग्र-भंग पर दी जाती है और दोनों ही में अत्यधिक शीत, विष के प्रयोग और ऐलेक्ट्रोनीय बाधा द्वारा प्रेरणा रुकती है। इसका अनिवार्य निष्कर्ष यह है कि पारेषण-निश्चय दोनों

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