________________
५
विवेकहीन
१. विवेकान्धो हि जात्यन्धः । -योगवाशिष्ठ १४।४१
जो पुरुष विवेकान्ध (विवेकरूपी नेत्रों से हीन) है, वह जन्मान्ध है। शिरः शावं स्वर्गात् पतति शिरसस्तत्क्षितिधरं । माहीध्रादुत्त ङ्गादवनिमवनेश्चापि जलधिम् ।। अधो गङ्गा सेयं पदमुपगता स्तोकमथवा । विवेकभ्रष्टानां भवति विनिपातः शतमुखः ।।
-मर्तृहरि-नीतिशतक १० स्वगं से घ्युत होकर शिवजी के सिर पर, शिवजी के सिर से हिमालय पर, हिमालय मे पृथ्वी पर और फिर पृथ्वीतल से समुद्र में गिरती हुई घही गंगा लघुपद को प्राप्त हुई । वास्तव
में विवेक भ्रष्ट पुरुषों का पतन सफड़ों प्रकार से होता है । ३. पुरेसा विवेकहीनानां, सेक्या न धनार्जनम्।
विवेकहीन पुरुषों की सेवा करने से धन नहीं हुआ करता । ४. फूटी आंख विवेक की, लखै न सन्त-असन्त ।
जाके संग दस-बीस हैं, ताको नाम महन्त ।।