Book Title: Uttaradhyayanam Sutram Part 03
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Anekant Prakashan Jain Religious Trust

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Page 394
________________ उत्तराध्ययन ॥३९२॥ षट्त्रिंशमध्ययनम्. गा१३०१४० मूलम्-बेइंदिआ एएऽणेगहा एवमायओ । लोएगदेसे ते सत्वे, न सवत्थ विआहिआ ॥ १३०॥ संतई पप्पणाईआ, अपज्जवसिआ वि ठिई पडुच्च साईआ, सपजवसिआ वि अ॥१३॥ वासाइं बारसेव उ, उक्कोसेण विआहिआ।बेइंदिअआउठिई, अंतोमुहुत्तं जहन्निआ ॥१३२॥ संखेजकालमुक्कोसा, अंतोमुहुत्तं जहनिआ । बेइंदिअकायठिई, तं कायं तु अमुंचओ॥१३३॥ अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहण्णयं । बेइंदिआण जीवाणं, अंतरेअं विआहिअं॥१३४॥ 'एएसिं'-इत्यादि प्राग्वत् ॥ १३५ ॥ त्रीन्द्रियानाहमूलम् तेइंदिआ उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिआ। पजत्तमपजत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे ॥१३६ ॥ कुंथू पिपीलि उइंसा, उक्कलुद्देहिआ तहा । तणहारकट्ठहारा, मालुगा पत्तहारगा ॥ १३७ ॥ कप्पासहिमिजा य, तिंदुगा तउसमिंजग। सदावरी अ गुम्मी अ, बोधवा इंदकाइआ ॥१३८॥ इंदगोवगमाइआउणेगहा एवमायओ। लोएगदेसे ते सत्वे, न सव्वत्थ विआहिआ ॥ १३९॥ __ व्याख्या-इह कुन्थुप्रमुखाः केचित्प्रतीताः, गुल्मी शतपदी, केचित्तु यथासम्प्रदायं ज्ञेयाः ॥ १३९ ॥ मूलम्-संतई पप्पडणाईआ, अपजवसिआवि अ। ठिई पडुच्च साईआ, सपज्जवसिआवि अ॥१४०॥ UTR-3

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