Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चराध्ययन सूत्रम् ॥१११६॥ भाषांतर १९ * माणुसते असारंमि । वाहिरोगाण आलए । जरामरणगत्थंमि । खपि न रमामिहं ।। १५ ॥ साररहित, ग्याधि तथासेगोन आलय-धर, जरामरणधी प्रस्त, एवा मानुषस्वमा मने एक क्षण पण गमतुं नथी, १५ व्या-हे पितारावसारे मनुष्यत्वेऽहं क्षणमपि न रमामि,न हर्ष भजामि.कीदृशे मनुष्यत्वे? व्याधिरोगाणामालये, व्याधयः कुष्टशूलादयः, रागा वातपिच श्लेष्मज्वरादयः, तेषां ग्रहे. पुनः कीदृशे मनुष्यत्वे? जरामरणाभ्यां ग्रस्ते.।१५। हे माता पिता ! आ मनुष्यपणामां मने एक क्षण पण गमतुं नथीमने हर्ष थतो ना, मानुषत्व केवु ? व्याधिो कोढ शूळ| इत्यादिक तथा रोग-पातपित्त कफ जरादिक, तेनु आलय घर, तथा जरा मरणवडे अस्त-चारेकोस्थी उपद्रुत. १५ जम्मदुक्ख जरादुक्खं । रोगा य मरणाणि य ।। अहो दुक्खो हु संसारे । जत्य कीसति जंतुणो ॥१६॥ जन्मदुःख जरादुःख बक्री रोगो अने मरणो, अहो! आ संसार दुःखमय के के जेमा जीयो क्लेश पाम्याज करे. १६ व्या०-हे पितरौ । हु इति निश्चयेन संसारा दुख दुःखहेतुर्वर्तते, अहो इत्याश्चर्ये, धत्र संसारे जीवाः क्लिश्यंति क्लेशं प्राप्नुवंति संसारे किं किं दुख? जरा तदाह-जन्मदुख दुःख, पुनः संसारे रोगास्तापशीतशिरोऽतिप्रमुखाः. पुनर्मरणानि च एतानि सर्वाणि दुःखानि यत्र संति. तस्मादयं संसारा दुःखहेतुरेव. यत्र भवभ्रमणे जीवाः मिश्यति क्लेशार्ता भवंति. हे माता पिता ! 'हु निश्चये संसार, दुःख हेतुन छे. अहो ! आश्चर्य के जे संसारमा जीवो क्लेश पामे छे, संसारमा क्यां * * * For Private and Personal Use Only

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