Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie उत्तराध्ययन सूत्रम् ॥१११४॥ भाषांतर अध्य. १९ ॥१११४॥ व्या०-हे पितरौ मया पूर्व भोगा मुकाः. फोदश भोगाः ? विषफलोपमाः, विषफलैरुपमीयते इति विषफलोपमा, पूर्व भागसमये मधुराः, परं पश्चात्कटुकविपाकाः, कटुको विपाको येषां ते कटुकविपाकाः, प्रांते दुःखदा इत्यर्थः. अध पुनः कीदृशाः? अनुबंधदुःखावहा अनुबंधं निरंतरं दुःखस्य आवहा दायकाः, अविच्छिन्नदुखदायिनः, १२ | हे माता पिता ! में पूर्वजन्ममा भोग भोगव्या छे, केवा भोग ? विषफळोपम-विषफळनी उपमा जेने देवाय एवा, प्रथम भोगवना टाणे तो मधुर लागे पण कटुक विषाक-कडवा परिणामवाळा, अर्थात् अंते दुःख देनारा तथा अनुबंध दुःखावह निरंतर दुःखोज लइ आवनारा=अविच्छिन्नदुःखदायी. १२ इमं शरीरं अणिचं । असुइ असुइसंभवं ।। असासयावासमिण । दुक्ख केसाण भायगं ॥ १३ ॥ आ शारीर अनित्य के अशुधि-पोते अपवित्र के तेमज अशुधिमळमूत्रादिकनी जेमांबी उत्पत्ति थाय हे ते , बळी अशाश्वत-नश्वर पदार्थना भाषासरूप अने दुःख तथा क्लेशन भाजन के. ५ व्या-हे पितराविद शरीरमनित्यमशाश्वतं, अशुच्यपवित्रं च वर्तते. पुनरिदं शरीरमशुचिसंभवमशुचिशुकरेतःसंभूतं. पुनरिदं शरीरमशाश्रतावास, अशाश्वतोऽनित्य आवासो जीवस्य निवासो यस्मिंस्तदशाश्वतावासं. पुनरिदं शरीरं दुःखक्लेशानां भाजनं, दुखानि जन्मजरामृत्युप्रमुखाणि, क्लेशा धनहानिस्वजनवियोगादयस्तेषां भाजनं. स्थानं. अथवा दु:खहेतवो ये क्लेशा रोगास्तेषां भाजनं. ॥ १३ ॥ 4 %A4 For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 254