Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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उत्तराध्य. यन मुत्रम् ॥१११२॥
भाषांतर अध्य०१९ ।१११२॥
ॐॐॐॐ
॥जाईमरणे समुप्पन्ने । मियापुत्ते महहिए ॥ सरई पोराणियं जाई । सामण्णं च पुरा कहं ॥९॥ जातिस्मरण समुत्पन्न भयुं त्यारे महोटी द्धिवाळाए सगापुत्रे पौराणिकजाति एटले पूर्वभवने करेला श्रामण्य चारित्रने स्मरण करवा लाग्या..
व्या-मृगापुत्रो महाद्धिको राज्यलक्ष्मीयुक्तः पौराणिकी प्राचीनां जाति स्मरनि. किं स्मरति? मया श्रामण्यं चारित्रं पुरा कृतं, पूर्व पालितमभूत. क सति ? जातिस्मरणे ज्ञाने समुत्पन्ने सति संजाते सति. ॥ ९॥ इत्यत्र पाठांतरमस्ति, गाथापाः पुनरुक्तित्वात्.
मृगापुत्र महर्दिकराजलक्ष्मीयुक्त पौराणिकी पूर्वनी जाति भवनुं स्मरण करे छे. ' में पूर्वभवे श्रामण्य चारित्र कपाब्यु हतुं. क्यारे ? जातिस्मरण उद्भव्युत्यारे. ( अहीं गाथामा पुनरुक्ति जेवू के तेथी पाठांतर होय एम जणाय छे)९
विसएसु अरजंतो। रजतो संजमंमि य ॥ अम्मापिउरं उवागम्म । इमं वयणमब्यवी ॥१०॥ विषयोमा प्रीति विनानो मात्र संयममाज रंजित रहेसो [मृगापुत्र मातापिता समीपे आधीने आई वचन बोल्यो, .
ध्या-मृगापुनः 'अम्मापिउर' मातापितरमुपागम्य समीपमागत्येदं वचनमब्रवीत्. किं कुर्वन् ? विषयेच्चरजन् विषयेभ्यो विरक्तो भवन, च पुनश्चारित्रे संघमे रजन् साधुमार्गे प्रीति कुर्वमित्यर्थः ॥१०॥
मृगापुत्र "अम्मापिउरे" माता पितानी समीपे भावीने आ वचन बोल्यो, के करीने १ विषयोमा रंजन न पामतो; विषयोथी विरक्त थयेलो तथा चारित्र-संयममांज रंजन पामतो, अर्थात् साधुमार्गमां प्रीति घरावतो. १०
अरुका
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