Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05 Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailaseagarsuri Gyanmandie उत्तराध्ययन सत्रम् ॥१९१०॥ भाषांतर अध्य०१९ ॐ4% ज्ञानदर्शनचारित्रगुणानामाकरं खनिसहशं. अनंतर ते मृगापुत्र कुमार त्यां=ते चतुष्क त्रिक चत्वरादिकने विषे विचरता श्रमणने जोया. केवा श्वमण ? संयत जीवयतना करता. संयत विशेषणवडे मुचित अर्थ एवो के के-वीतराग देवना मार्गने अनुसरनारा थे, नहिं के शाक्यादिमुनि दर्शित माने अनुसरनारा वळी ते श्रमण केवा ? तपोनियम संयमधर बाह्य तथा अभ्यंतर भेदथी द्वादविध तपःकर्म, नियम द्रव्य, क्षेत्र, काळ तथा भाववढे अभिग्रह लेवो ते; संयम सत्तर प्रकारना; एप: नियम तथा संयमने धारण करनारा, तथा शीलान्य एटले अदार हजार ब्रह्मचर्य भेदथी संपन्न अने गुणाकर-अर्थात् ज्ञानदर्शन चारित्र ए रत्नत्रयीरूप गुणांना आकर खाणरूप. ५ |तं देहई मियापुते । दिडीए अणिमिस्सिए । कहिं मन्नेरिस रूवं । दिपुरुवं मए पुरा ॥६॥ लामृगापुत्र अनिमिशित हिथी ते मुनिने जोह रखो. मनमा विचार करता-९ मार्नु छु, आq रूप में क्यांक प्रथम जोलु के. एम तेने लाग्युं. व्या-मृगापुत्रस्तं मुनिमनिमेषया दृष्टया देहई' पश्यति. दृष्ट्वा चैवं विचारयति, कचिदेवादशं रूपं मया दृष्टपूर्वमहमेवं मन्ये जानामि, मुनिं दृष्ट्वा प्रमुदितमना अभत्, पूर्वपरिचितमिव मुनि मेने इत्यर्थः ॥ ६ ॥ मृगापुत्र ते मुनिने अनिििषत दृष्टिी जुए छे. जोइने विचार करे छे के-'क्यांक आ रूप में प्रथम जोयेलुछे एम। पान छ' मुनिने जोइने हर्षयुक्त मनवाळो थयो अने जाणे पूर्वे परिचित होय तेम मुनिने भनमां मानवा लाग्यो. ६ ॥ माहुस्स दरिसणे तस्स । अज्झवसाणमि सोहणे ॥ मोहं गयस्म संतस्स । जाईसरणं समुप्पन्नं ॥ ७॥ ते साधुना दर्शन पता शोभन अभ्यवसायमा मोहम्मू ने पामेला.ते [मगापुत्र] ने जातिस्मरण उत्पम ध.. X+ % For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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