Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्ययन सूत्रम् सुयाणि मे पंचमहब्वयाणि | नरएसु दुश्वं च तिरिक्वजोनिसु॥ निरिटाणकामोथि महण्णवाओ। अणुजाणह पब्वइस्सामि अम्मो ॥ ११ ॥ भाषांतर में पांच महावत सांभळ्या के तेम नरकोने विषये जे दुःख तथा तिर्यक योनिमा जे दुःख ते पण में सांभळेल के आ महार्णव-संसार अध्य०१९ | सागरथी हुं निर्षिणकाम-निवृत्ताभिलाष थयो छु. है अम्मा हे माता ! मने अनुज्ञा=रजा आपो हुं प्रवज्या गृहण करीश. ११ ॥१११३॥ च्या-हे पितरौ! मे मगा पंच महात्रतानि प्राग्जन्मनि श्रुतानि, नरकेषु पुनास्तिर्यग्योनिषु दुःखं भुक्तमभूत्. ततोऽहं निर्विणकामोऽस्मि, निवृत्तविषयाभिलाषोऽस्मि. महार्णवात्संसारममुद्रात् प्रत्रजिष्यामि निस्तरिष्यानि. | यूयमतो मामनुजानीत ? आज्ञा दत्त ? ॥ ११ ॥ हे माता पिता! में पांच महावतो पूर्वजन्ममा सांभळ्या छे बळी नरकोमा तथा तिर्यक् योनिमां थता दुःखो में भोगन्यां छे तेथी। हुँ निर्विष्णकाम एटले विषयनी अभिलापाओ जेनी निवृत्त थयेली छे एवा हुं. आ महार्णवतुल्य संसारसमुद्रथी प्रत्रजित थइश-संसारसमुद्रने सरीश. माटे तमे मने अनुज्ञा दीक्षा ग्रहण करवानी आज्ञा दीयो. ११ अम्माताय मग भोगा । भुत्ता विसफलोचमा ॥ पच्छा कायधिवागा । अणुबंधदुहावहा ।। १२ । अम्मा वाय-हे माता पिता ! विषफळनी जेने उपमा देवाय तेवा भोगो भोगव्या. के जे पाछळधी कडवा विपाकपाळा होय . अने | उत्तरोत्तर दुःखने लइ आवनारा छे. १२ 4% का ऊन For Private and Personal Use Only

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