Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Tattvaprabhvijay
Publisher: Jinprabhsuri Granthmala
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पासाए कारइत्ता णं, वद्धमाणगिहाणिअ । वालग्गपोइआओ अ, तओ गच्छसि खत्तिआ ! ||२४|| प्रासादान् कारयित्वा खलु, वर्धमानगृहाणि च । बालाग्रपोतिकाश्च, ततो गच्छ क्षत्रिय ! ।।२४।। एअमझें निसामित्ता, हेउकारणचोइओ | तओ नमी रायरिसी, देविंदं इणमब्बवी ।।२५।। एतमर्थं निशम्य, हेतुकारणनोदितः । ततो नमी राजर्षिः, देवेन्द्रं इदमब्रवीत् ।।२५।। संसयं खलु सो कुणइ, जो मग्गे कुणई घरं | जत्थेव गंतुमिच्छिज्जा, तत्थ कुविज्ज सासयं ।।२६।। संशयं खलु स कुरुते, यो मार्गे कुरुते गृहम् । यत्रैव गन्तुमिच्छेत्, तत्र कुर्वीत स्वाश्रयम् ।।२६ ।। एअमठं निसामित्ता, हेउकारणचोइओ । तओ नमि रायरिसी, देविंदो इणमब्बवी ।।२७।। एतमर्थं निशम्य, हेतुकारणनोदितः ।। ततो नमिं राजर्षि, देवेन्द्र इदमब्रवीत् ।।२७।।.
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