Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Tattvaprabhvijay
Publisher: Jinprabhsuri Granthmala

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Page 136
________________ जहेह सीहोव मिअं गहाय, मच्चु नरं नेह हु अंतकाले । न तस्स माया व पिआ व भाया, कालंमि तम्मि सहरा भवंति।।२२।। यथेह सिंहो वा मृगं गृहीत्वा, मृत्यु नरं नयति हु अन्तकाले । न तस्य माता वा पिता वा भ्राता, काले तस्मिन्नंशधरा भवन्ति ।।२२।। न तस्स दुक्खं विभयंति नाइओ, न मित्तवग्गा न सुआ न बंधवा | इक्को सयं पच्चणुहोइ दुक्खं, कत्तारमेवं अणुजाई कम्मं ||२३ ।। न तस्य दुःख विभजन्ते ज्ञातयो; न मित्रवर्गाः न सुताः न बान्धवाः | एकः स्वयं प्रत्यनु भवति दुःखं, कर्तारमेवं अनुयाति कर्म ।।२३।। १२७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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