Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Tattvaprabhvijay
Publisher: Jinprabhsuri Granthmala

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Page 118
________________ देवाभिओगेण निओइएणं, दिन्नामु रण्णा मणसा न झाया । नरिंददेविंदऽभिवंदिएणं, जेणामि वंता इसिणा स एसो ||२१।। देवाभियोगेन नियोजितेन, दत्तास्मि राज्ञा मनसा न ध्याता | नरेन्द्रदेवेन्द्राभिवन्दितेन, येनास्मि वान्ता ऋषिणा स एषः ।।२१।। एसो हु सो उग्गतवो महप्पा, . जिइंदिओ संजओ बंभयारी । जो मे तया निच्छइ दिज्जमाणिं, पिउणा सयं कोसलिएण रन्ना ||२२|| एष खलु स उग्रतपा महात्मा, जितेन्द्रियः संयतो ब्रह्मचारी | यो मां तदा नेच्छति दीयमानां, पित्रा स्वयं कोसलिकेन राज्ञा ।।२२।। महाजसो एस महाणुभागो, घोरव्वओ घोरपरक्कमो अ । मा एअं हीलह अहीलणिज्जं, . मा सव्वे तेएण भे णिद्दहिज्जा ||२३।। महाशया एष महानुभागो, घोरव्रतो घोरपराक्रमश्च । मैनं हीलयताहीलनीयं, मा सर्वान् तेजसा भवतो निर्धाक्षीत् ।।२३।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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