Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Tattvaprabhvijay
Publisher: Jinprabhsuri Granthmala
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कतरस्त्वमित्यदर्शनीयः, .
. कया वा आशया इहागतोऽसि । अवमचेलक ! पांशुपिशाचभूत !, ..
___ गच्छ स्खल किमिह स्थितोऽसि ।।७।। जक्खो तहिं तिंदअरुक्खवासी,
__अणुंकपओ तस्स महामुणिस्स | पच्छायइत्ता नियगं सरीरं,
इमाइं वयणाई उदाहरित्था ||८|| यक्षस्तत्र तिन्दुकवृक्षवासी, अनुकम्पकः तस्य महामुनेः | प्रच्छाद्य निजकं शरीरं, इमानि वचनानि उदाहरत् ।।८।। समणो अहं संजओ बंभयारी,
विरओ धणपयणपरिग्गहाओ। परप्पवित्तस्स उ भिक्खकाले,
अन्नस्स अट्ठा इहमागओम्हि ।।९।। श्रमणोऽहं संयतो ब्रह्मचारी, विरतौ धनपचनपरिग्रहात् । परप्रवृत्तस् तु भिक्षाकाले, अन्नस्य अर्थाय इहागतोऽस्मि ।।९।।
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