Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Tattvaprabhvijay
Publisher: Jinprabhsuri Granthmala

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Page 112
________________ तं पासिऊणमेज्जतं, तवेण परिसोसिअं । पंतोवहिउवगरणं, उवहसंति अणारिआ ।।४।। तं दृष्ट्वा आयान्तं, तपसा परिशोषितम् । प्रान्तोपध्युपकरणं, उपहसन्ति अनार्याः ।।४।। जाईमयपडित्थद्धा, हिंसगा अजिइंदिआ | अबंभचारिणो बाला, इमं वयणमब्बवी ||५|| जातिमदप्रतिस्तब्धाः हिंसकाः अजीतेन्द्रियाः । अब्रह्मचारिणो बाला, इदं वचनमब्रुवन् ।।५।। कयरे आगच्छइ दित्तरूवे, काले विगराले फोक्कनासे । ओमचेलए पंसुपिसायभूए, संकरसं परिहरिअ कंठे ||६|| कतर आगच्छति दीप्तरूपः, कालो विकरालः फोक्कनासः | अवमचेलकः पांशुपिशाचभूतः, सकरदूष्यं परिधृत्य कण्ठे ||६|| कयरे तुमं इअ अदंसणिज्जे, . ... काए व आसा इहमागओसि | ओमचेलगा ! पंसुपिसायभूआ !, गच्छ क्खलाहि किमिह ट्ठिओऽसि ।।७।। १०३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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