Book Title: Updesh Mala Author(s): Jayanandvijay Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti View full book textPage 8
________________ देशना, वाचना साधु-साध्वीयों को और श्रावक श्राविकाओं को प्रफुल्लित हृदय से सुननी चाहिए। उस समय मेरे पूर्व कृत प्रबल पुण्य का उदय हुआ है जिससे मुझे जिनवाणी श्रवण का सुअवसर प्राप्त हुआ है। मैं प्रबल पुण्यशाली हूँ ऐसा चिंतन भी होना चाहिए। इसका अर्थ यह भी नहीं कि चाहे जैसे मुनि की देशना सुनी जा सकती है। जिनशासन में जिनवाणी किसके पास सुननी उसके लिए कड़क नियम बताये गये हैं। इस विषय में स्वयं उपदेश मालाकार ने आगे के श्लोकों में व्याख्या की है। जं आणवेइ राया, पगइओ तं सिरेण इच्छंति । . इअ गुरुजणमुहमणिअं, क्यंजलिउडेहिं सोयव्यं ॥७॥ जिस प्रकार ससांग स्वामी 'राजा जो आज्ञा करता है, उसकी आज्ञा को प्रजाजन एवं राज्य सेवक अंजलीबद्ध होकर मस्तक पर आज्ञा चढ़ाकर स्वीकार करने की इच्छा करते हैं वैसे ही चतुर्विध संघ को सद्गुरु मुख से प्रस्फुटित वचनों को हाथ जोड़कर अंजलीबद्ध होकर सुनना चाहिए। इससे साधु के लिए विनय ही प्रधान है ऐसा दर्शाया ।।७।। .. जिन शासन में "विणयमूलो धम्मो" सूत्र देकर चतुर्विध संघ के लिए विनय की प्रधानता प्रस्थापित की है। ... जह सुरगणाणं इंदो, गहगणतारागणाण जह चंदो । ... जह य पयाण नरिंदो, गणस्स वि गुरु तहाणंदो ॥८॥ ... जैसे देवसमूह में इन्द्र श्रेष्ठ, मंगलादि ८८ ग्रह, अभीची आदि नक्षत्र, कोटाकोटी ताराओं रूपी ज्योतिषी देवों में चंद्र श्रेष्ठ है और प्रजाजनों में राजा श्रेष्ठं है और उनकी आज्ञा सभी आनंद पूर्वक स्वीकार करते हैं। इन्द्र, चंद्र और राजा सभी आनंद दायक है वैसे सद्गुरु भी साधु समूह को आनंद दायक है ।।८।। बालुति महीपालो, न पया परिभवइ एस गुरुउवमा । जं वा पुरओ काउं, विहरंति मुणी तहा सो वि ॥९॥ वय में बाल होने पर भी उस राजा का पराभव तिरस्कार प्रजा नहीं करती, वह सभी को मान्य होता है। वही उपमा आचार्य को हैं। गच्छ के अधिपति पद पर गीतार्थ होता है वह उम्र में बाल हो तो भी उसकी आज्ञा 1. 'स्वाम्यमात्यसुहृत्कोषराष्ट्रदुर्गबलानि च' अमरकोष--राजा, मंत्री, मित्र, कोष, देश, किल्ला और सैन्य ये राजा के सात अंग है। श्री उपदेशमालाPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 128