Book Title: Updesh Mala Author(s): Jayanandvijay Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti View full book textPage 6
________________ ।। श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नमः ।। ।। प्रभु श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरीश्वराय नमः ।। ।। महत्तर श्री धर्मदासगणिविरचिता ।। श्री उपदेश माला नमिऊण जिणवरिंदे, इंदनरिंदच्चिए तिलोअगुरू । उवएसमालमिणमो, बुच्छामि गुरुवएसेणं ॥१॥ तीनों जगत के गुरु, देवेन्द्र और नरेन्द्रों से पूजित श्री जिनेश्वर भगवंतों को नमस्कार कर मैं (श्री धर्मदासजी गणि) सद्गुरु उपदेशानुसार इस उपदेशमाला को कहूँगा ।।१।। जगचूडामणिभूओ, उसभो वीरो तिलोअसिरितिलओ। एगो लोगाइच्चो, एगो चक्खू 'तिहुयणस्स ॥२॥ तीन जगत के मुकुट समान प्रथम ऋषभदेव और तीन जगत की लक्ष्मी के तिलक समान वीर स्वामी इनमें एक ऋषभदेव पंचास्तिकाय रूप लोक में सूर्य समान सर्व प्रकार से मार्ग दर्शक होने से अंतिम श्री वीर विभु ती . भुवन में नेत्र तुल्य त्रिभुवन के लोगों को ज्ञान दाता होने से [उनको मैं नमस्कार करता हूँ।] ।।२।। . . संवच्छरमुसभजिणो, 'छम्मासा बद्धमाणजिणचंदो । इअ विहरियानिरसणा, जएज्ज एओवमाणेणं ॥३॥ .: ऋषभदेवजी एक वर्ष पर्यंत आहार के बिना विचरें और महावीर प्रभु छ महीने तक आहार के बिना विचरें। उपदेशमालाकार कहते है कि हे मुनि तं भी इस प्रकार इन के दृष्टांत से तप करने में उद्यमवंत बन ।।३।। ... धर्मदास गणि ने मंगलाचरण में प्रथम और अंतिम जिनेश्वर की स्तुति स्तंवनाकर मध्यम बाईस तीर्थंकरों की भी स्तुति कर दी है। ... स्तुति में भी भगवंत के अतिशयों का वर्णन दे दिया है। देवेन्द्रों से पूजित शब्द से पूजातिशय, मार्गदर्शक से वचनातिशय, नेत्र तुल्य से ज्ञानातिशय और इन तीनों का वर्णन आने से अपायापगमातिशय आ ही गया है। . तृतीय गाथा में भगवंत के तप का वर्णनकर साधु के जीवन में, उपलक्षण से श्रावक के जीवन में भी तप का महत्त्व विशेष होना चाहिए यह दर्शाया है। 1. तिहुअणजणस्स। श्री उपदेशमालाPage Navigation
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