Book Title: Upaang Prakirnak Sootra Ggaathaaadi Akaaraadi Kram
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम संबंधी साहित्य
उपांग-प्रकीर्णक सूत्रादि-अकारादि
[ क-कार + ख-कार ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता उपांग-प्रकीर्णक सूत्रादि-अकारादिः (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
देखीए
सूर्य०१२३ ०४ जं. २५ नि० २६ प्रकी०२७
दीप क्रमांक के लिए देखीए
ऑ०१९ कृणदिकोणलग्गेसु २७-२११ कोई पुण पावकारी रा० २०ा केइत्थ सिय विमाणा २७-१९७१ को केण समं जाया जी०२१
केइ य हरियविमाणा २७-११७२ | कोडी वाणउती खलु प्रज्ञा०२२/ केणं वद्दा चंदो? २७-२०७० " बातालीसा ॥ २२॥ वति चंदो
२१-६७ " वायालीसा
२४-७१ | को दुक्खं पाविजा केवइयाण० ओरालिय० २२-१७७सू० | कोरिटधाउबणिय
, भंते ! जंबू० २१-१८७ | को सडणपडणवि किरिणः केवइया व विमाणा २७-९३७ कोसंबीनयरीए कि केवतियाण कण्ह २२-३०सू० |कोसायारं जोणी
भंते ! दीव० २१-१९०सू० | कोहमयमाय केवलणाणुबउत्ता
| कोहस्स व माणस्स व " नाणुवउत्ता
२२-१७० | कोहं खमाइ माणं
| कोहं माणं माय केवलिणो परमोही
" " केवली पं० इमं रयण. २२-३१५सू० कोहाइकसाया खलु कोई पढभपाउसंमि २७-९३० | कोहाईण विवागं
MARREARRESENSECRET
२७-४७१ | कोहेण नंदमाई २७-१८२२ | कोहे माणे माया - २२-१९५ २४-४४ | खइपण व पीएण व २७ १९४
खगतुंडभिन्नदेहो २७ १७४४
खजूरिपत्तमुंजेण २७ ७८५ २७-१४३२ खमगत्तणनिम्मसो २२-१७५१
खरफरुसककसाए २७-७६३
खरघोडाइट्ठाणे २७-६६५ खलिअस्स य सेसि
खंडसिलोगेहि जवो २७-३६२ २७-४९८ | खंडा जोअण वासा २५-८१ २७-१४२५ खंडिअसिणेहदामा २७-१४२४ खंते दंते गुत्ते मुत्ते २७-७६२ २७-२०१ खामेमि सव्वजीवे २७-१४०
| खामेमि सव्वसंधं २७-६७७ २७-१६०८ | खित्तद्धयविच्छिन्ना २७-१२०५ २७-४२६ | खित्ताणु० सव्य० तसकाइ० २२-८९सू०
'सवृत्तिक आगम
सुत्ताणि
॥२२॥
~28~

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79