Book Title: Upaang Prakirnak Sootra Ggaathaaadi Akaaraadi Kram
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 72
________________ आगम संबंधी उपांग-प्रकीर्णक सूत्रादि-अकारादि [स-कार ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता उपांग-प्रकीर्णक सूत्रादि-अकारादिः (आगम-संबंधी-साहित्य) साहित्य प्रत सूत्रांक औ०१९ २२-२०२ सूर्य०/२३ २० जी. देखीए प्रज्ञा०२२ नि० २६ दीप क्रमांक के लिए देखीए VERSEASE SAXY सव्वे रसे पजीए सब्वेवि य संबंधा सब्बे सब्बहाए | सब्वेसु य दब्बेसु य सब्योवि किसलो खलु ससिसमगपुण्णमासि. ससिसमगपुन्निमासि ससिवी दुगोत्तफुसिया सहसकारमणाभोगओ संकुइअवलीचम्मो संखंक० अज्जुणसुवण्णय संखंकसनिकासा २७-१४१० संगहो(हु)बग्गहविहिणा | संगं परिजाणामि २७-१७७३ २७-१४५० संगो महाभयं जं २२-९८ | संघयणधिईजुत्तो २५-८६ | संघयणं संठाणं २४-२६ | संघो सईदयाणं २२-३४ | संजपणं० संजतेति २७-१३५१ संजयथसंजयमीसगा २७-४८६ | संजोगमूला जीवेणं २७-२२०६ २७-११९६ | संज्झागयंमि कलहो २७-११९३ संज्झागयं रविगयं | राहुगयं २७-१९६५ संडिय मंतिय होत्तिय २७-७४९ | संठाणं अद्द पुस्लो २७-४०७ | संठाणं च पमाणं २७-७२५ संठाणं वाहल्लं २७-१५०२ | संतोवसंतधिमं २७-२१० संथारयपब्बजं पब्बजद २७-४०८ संनिहिया सामाणा २७-१७६० | संपत्ते बलयिरिए २७-४९७ | संबंधिबंधवत्ते २७-७०५ | , बंधबेसु २२-२४८० | संभरसु सुअण! जंतं २२-२२२ | संलेहणा य दुविहा | संवच्छरस्स संदरि! २७-९० | संविग्गा भीयपरिसा य २७-८६४ | संसारचकवालंमि २७-८६९ |संसारचकवाले २७-८६६ २२-३७ | संसारबंधणाणि य २५-१०१ | संसारमूलवीयं २५-१२२ । संसाररंगमझे २७-२४२८ २ ४ २७-३०८ २२-२५३| २७-१८७८प्रकी०२७ २७-१८३१ २७-२६११ २७-४३३ २७-१४११ 'सवृत्तिक आगम २७-८३७ २७-११२ २७-१४८२ २७-१८५ २७-१२६५ २७-३३४ २७-२६२ | संखिजजोयणा खलु संखेषेण मए सोम्मा संगनिमित्तं मारह सुत्ताणि PRA||६६॥ ~72~

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