Book Title: Upaang Prakirnak Sootra Ggaathaaadi Akaaraadi Kram
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 76
________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए रावृत्तिक आगम सुत्ताणि' औ० १९ रा० २० जी० २१ प्रज्ञा०२२ ॥ ७० ॥ उपांग- प्रकीर्णक सूत्रादि- अकारादि [ स कार ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता उपांग- प्रकीर्णक सूत्रादि - अकारादिः (आगम-संबंधी - साहित्य) 35 35 39 से किं तं ते दियसंसार० २२- २८० ते दिया० ओवइया २१-३०सू० लेऊकाइया २१-२४स्० २२- १७० २२- ३४सू० २१- ३७० 35 35 35 [35] [3] [35] 37 55 95 " " " थलयरसमु० थलयरा [39] [9] [39] " " " थावरा देवा 25 35 33 [5] [3] [5] 33 33 33 1 2 3 35 35 31 21 22 23 35 35 37 33 15 35 33 थलयरपंचिं० 35 53 59 नेरइया " 33 पत्तेयसरीर० " पन्नवणा २१-४०सू० २१-१०सू० २२- ३८० २१-४३० २१-११५० २१- ३३० २१-६७सू० २२- ३१स्० २२-२२० २१-२१० २२- १सू० भवणवासी 33 33 35 २१-११६सू० 35 35 39 35 31 39 से किं तं परंपरसिद्धअसंसा० २२-८० से किं तं येई० पुलाकिमिया २२-२७० परिसप्पथल २२- ३५सू० पंचेदयतिरिक्त० २१-३४० पंचिदिय० जलयर ०२२-२२० पदिय संसार २२ - ३०सू० पंचेंदिया पुढविकाइया २१- ३२० ० सुम० 35 35 35 33 33 29 35 39 39 253 25 35 35 35 35 35 35 35 35 35 59 55 99 35 35 35 [15] 1.25 पुरिसा २१-११ सू० २२-११स्० २१-५३सू० वादरपुढवि० २२-१३सू० वादरते उकाइया २१-२६० बादरवणस्पति २२-२१स्० वायरआउक्काइया २१-१७० वायरढ वि० २१-१४स्० २१ - २०० १९-१९० २१- २९० 35 35 39 1 वायरवणस्सइ० 35 35 39 25 25 25 बाहिरए बेदिया ~76~ 35 53 35 31 33 35 35 35 35 25 11 11 " 33 33 35 1357 " " " वणस्सइकाइया 355 35 55 5 मनुस्सा २२- ३७० .. संमुच्छ्रिम० २१-४२सू० २१-१०६० २२-२३० बाउकाइया चाउ० सुडुम० 233 33 255 25 २१ - २७सू० २२-१४स्० " " " सण्हवायर० सहवा०सत्तविहा २१-१५० सव्यजीवाभिगमे २१-२४५सू० संमुच्छिम० ति० २१-३५० संमुच्छिममगुस्सा २१-१०७० 21 22 23 35 रुक्खा रुविशजी० २२-४० रुविअजीवा० खंघा २१-५० २२-१९० २१-१८० २२-१८० 33 35 35 25 सूर्य० (२३ चं० २४ जं० २५ नि० २६ प्रकी०२७ ॥ ७० ॥

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