Book Title: Tulsi Prajna 2003 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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13. तत्रैव, 1.13.20, अंसु. 3, पृ. 240 14. तत्रैव, 1.6.139, अंसु. 3, पृ. 299 15. राजप्रश्नीयसूत्र 129, उसु (उवंगसुत्ताणि), भाग-1, पृ. 112 16. तत्रैव 17. दशवैकालिक 8.54 (जैन विश्वभारती प्रकाशन) नवसुत्ताणि 18. अभिज्ञानशाकुन्तलम, छठा अंक 19. भगवतीसूत्र 15.16, अंसु-2, पृ. 657 20. तत्रैव, 15.23 21. ज्ञाताधर्मकथा 18.131, 135, अंसु-3, पृ. 182-183 22. बृहत्कल्पभाष्य पीठिका-262 23. आवश्यकचूर्णि-2, पृ. 165 24. बृहत्कल्पभाष्य पीठिका 172 25. कामसूत्र, वात्स्यायन, अध्याय-4 26. भगवती सूत्र 9.190, अंसु. 2, पृ. 449 27. तत्रैव 11.138, अंसु. 2, पृ. 519 28. ज्ञातधर्मकथा, 1.1.25, अंसु-3, पृ. 12 29. राजप्रश्नीय 75, व्यावर संस्करण, पृ. 48 30. ज्ञातधर्मकथा 1.8.117-126, अंसु-3, पृ. 180-181 31. तत्रैव 1.13.20 32. प्रश्नव्याकरण 1.14, अंस-3, प.642 33. राजप्रश्नीय 182, 183 (जैन विश्वभारती) 34. जीवाभिगमसूत्र 3.294, उवंगसुत्ताणि, खण्ड-1 35. उत्तराध्ययनसूत्र 35.4 36. ज्ञाताधर्मकथासूत्र 1.8.119, अंसु. 3, पृ. 180 37. ज्ञाता. 1.8.135, अंसु-3, पृ. 183 39. प्रज्ञापना 1.97, उवंसु. 2, पृ. 33
एसोसिएट प्रोफेसर विभागाध्यक्ष, प्राकृत एवं जैन आगम विभाग जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) लाडनूं 341 306 (राजस्थान)
तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-सितम्बर, 2003
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