Book Title: Tulsi Prajna 2003 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 48
________________ एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक पहुंचता है। पूरे तंत्रिका तंत्र में न्यूरोट्रांसमीटरों एवं रिसेप्टरों का एक अद्भुत नेटवर्क है जो एक सैकण्ड के हजारवें भाग में एक सूचना एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक पहुंचा सकता है । यह एक रासायनिक प्रक्रिया है । मस्तिष्कीय कोशिकाएँ भी अन्य कोशिकाओं की भांति अपना चयापचय संभालती हैं - यह एक जैविक प्रक्रिया है । " टेलिपेथी की तरह एक मस्तिष्क दूसरे मस्तिष्क तक भी संदेशों का आदान-प्रदान कर सकता है। इसे इलेक्ट्रोनिक प्रक्रिया कह सकते हैं। 29 " मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाले इलेक्ट्रीक तरंगों को इ. इ. जी. ( Electro-encephelogram) के माध्यम से ज्ञात किया जा सकता है। जागृत अवस्था में आंखें बंद कर मस्तिष्क के पीछे के हिस्से से जिस इलेक्ट्रीक प्रक्रिया को नापा जा सकता है, उसे " आल्फा तरंग" कहते हैं। इन तरंगों की फ्रीक्वेंसी (कम्पन - आवृत्ति) 7 से 13 Hz. नापी गई है। बिलकुल आगे के फ्रंटल कोर्टेक्स वाले हिस्से से सामान्यतः बीटा - रिधम 14 से 40 Hz. फ्रीक्वेंसी वाली तरंगें निकलती हैं। टेम्पोरेल हिस्से से थीटा तरंगों की फ्रीक्वेंसी 4 से 7 Hz. नोट की जाती है। डेल्टा तरंगें वयस्क व्यक्तियों में असामान्य रूप में पाई जाती हैं और कभी-कभी छोटे बच्चों में भी नींद की स्थिति में रिकॉर्ड की जाती है। फिर भी सामान्यतः डेल्टा तरंगें मस्तिष्कीय रूग्णता की सूचक मानी जाती हैं । " मस्तिष्क में प्रवाहित इलेक्ट्रीक करंट की अति मात्रा से 'मिर्गी" (Epilapsy ) की बीमारी पैदा होती है। 30 आधुनिक विज्ञान द्वारा प्रतिपादित यह सिद्धांत कि " मनुष्य की प्रत्येक शारीरिक प्रवृत्ति मनुष्य में विद्यमान इलेक्ट्रीसीटी (विद्युत्) के प्रयोग से ही हो रही है" स्वीकार करने में जैन मान्यता का कहीं भी अस्वीकार नहीं होता। बल्कि जैन मान्यता के अनुसार "औदारिक शरीर की प्रत्येक प्रवृत्ति में तैजस शरीर या प्राण का प्रयोग होता है" - ऐसा कहना लगभग वैज्ञानिक सिद्धांत की समानान्तर उक्ति कही जा सकती है। जैन मान्यता का तैजस शरीर या प्राणशक्ति और वैज्ञानिक मान्यता की "इलेक्ट्रीक ऊर्जा" -इन दोनों की पारस्परिकता स्वतः सिद्ध होती है। जैन सिद्धन्त में छह पर्याप्ति और दश प्राण का प्रतिपादन भी इस बात का समर्थन करता है । विज्ञान ने मस्तिष्कीय कोशिकाओं की प्रक्रिया को भली-भाँति स्पष्ट किया है। बुद्धि विकास का आधार भी मस्तिष्कीय न्यूरोन कोशिकाओं के परस्पर बनने वाले सर्किटों की संख्या पर है। मस्तिष्क में विद्यमान करोड़ों-करोड़ों न्यूरोनों के परस्पर सर्किटों की संभाव्य संख्या 10 पर 800 शून्यों को लगाने से होने वाली संख्या है, जिसे गणित की भाषा में 10800 के रूप में लिखा जाता है ।" विश्व का बुद्धिमान से बुद्धिमान व्यक्ति भी अपने जीवन में इसका शतांश भी विकसित नहीं कर पाता है । बच्चा जब से सीखना प्रारम्भ करता है, उसके मस्तिष्क में नित नए सर्किटों का निर्माण होता चला जाता है । तुलसी प्रज्ञा अप्रेल - सितम्बर, 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only 47 www.jainelibrary.org

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