Book Title: Tulsi Prajna 2003 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 54
________________ इस प्रकार जहां-जहां इलेक्ट्रीक चार्ज (विद्युत् आवेश) विद्यमान होता है, वहां-वहां उसके चारों ओर के आकाश (space) में एक इलेक्ट्रीक फील्ड (विद्युत् क्षेत्र) उत्पन्न हो जाता है, जहां उसका प्रभाव अनुभव किया जा सकता है। यदि इस विद्युत्-क्षेत्र में दूसरा कोई इलेक्ट्रीक चार्ज रखा जाए तो उस पर "इलेकट्रीक फोर्स" (विद्युत्-बल) लगना शुरू हो जाता है। __ पदार्थों में चालकता के गुणधर्म के आधार पर उनका वर्गीकरण सुचालक, अर्धचालक और कुचालक के रूप में किया जाता है। धातुएँ विद्युत् की सुचालक हैं, क्योंकि उनकी परमाणु-रचना ऐसी है जिनमें से इलेक्ट्रोनों को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। जिन पदार्थों के परमाणुओं में इस प्रकार की सुविधा नहीं हो सकती, वे कुचालक हो जाते हैं। जो अर्धचालक पदार्थ हैं, उनमें विशेष परिस्थितियों में यह सुविधा मिलती है। उदाहरणार्थसिलिकोन के परमाणु में यह गुणधर्म होने से उसका प्रयोग अर्धचालक (semi-conductor) के रूप में किया जाता है। लकड़ी, रबड़ आदि पदार्थ कुचालक (bad conductor) होने से उन्हें "इन्सुलेटर" के रूप में काम में लिया जाता है। इलेक्ट्रीसीटी दो प्रकार की है1. स्थित विद्युत् (Static Electricity) 2. चल विद्युत् ( Current Electricity) 1. स्थित विद्युत् ( Static Electricity)-सूखी हवा में सूखे बालों को रबड़ की कंघी से संवारते समय यह अनुभव होता है कि जैसे बालों से कोई चीज निकल रही हो, उसकी चड़-चड़ की आवाज भी सुनाई देती है। उस कंघी से यदि छोटे-छोटे कागज के टुकड़ों को छुआ जाए तो कागज के टुकड़े उसके साथ चिपक जाते हैं । यह प्रक्रिया "स्थित विद्युत्" का प्रभाव दर्शाती है। इससे यह पता चलता है कि बालों के अणुओं से इलेक्ट्रोन अलग होकर रबड़ की कंघी पर जमा हो जाते हैं और इन ऋण आवेश युक्त कणों से कागज़ के टुकड़े जैसे हल्के पदार्थ आकृष्ट हो जाते हैं। "स्थित विद्युत्" के विषय में ई.पू. 600 में यूनानी दार्शनिक (Thales) ने प्रयोग किए थे और पाया था कि तृणमणि नाम पेड़, जिसे ग्रीक भाषा में Electrum तथा अंग्रेजी में amber कहते हैं, उसके गोंद – कड़े रस से बनी हुई छड़ को ऊनी कपड़े से जब रगड़ा जाता है तब उस छड़ के द्वारा कागज के छोटे टुकड़े, छोटे-छोटे सूखे पत्ते, पक्षियों के पंख आदि को आकृष्ट किया जाता है। इस्वी सन् 100 में एक डॉ. विलियम गिलबर्ट ने कुछ अन्य पदार्थों पर भी प्रयोग किए। कांच की छड़ को रेशमी कपड़े से रगड़ने पर तथा एबोनाइट (आबनूस) की छड़ को फ्लेनल के कपड़े से रगड़ने पर भी ऐसा ही आकर्षण पैदा हो जाता है। जांच करने पर पता चला है कि कांच की छड़ पर धनात्मक और रेशमी कपड़े पर ऋणात्मक इलेक्ट्रीक चार्ज जमा हो जाता है। एबोनाइट, तृणमणि (Amber) तथा रबड़ की कंघी में ऋणात्मक तथा फ्लेनल, ऊनी कपड़ा एवं बालों पर धनात्मक इलेक्ट्रीक चार्ज जमा तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-सितम्बर, 2003 0 53 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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