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होता है। तृणमणि (Amber) का ग्रीक नाम (Electron) होने के कारण ऋणात्मक कणों का नाम इलेक्ट्रॉन हुआ तथा इस ऊर्जा को इलेक्ट्रीसीटी नाम दिया गया।
आकाश में चमकने वाली विद्युत् जिसे लाईटनिंग कहा जाता है, बादलों में जमा इलेक्ट्रीक चार्ज का पृथ्वी की ओर होने वाला डिस्चार्ज है। इलेक्ट्रीक चार्ज को सुवाहक मिलने पर वह सुरक्षित रहता है और उसमें करंट-प्रवाह के रूप में बहता है। यही अंतर है इलेक्ट्रीसिटी और लाइटनिंग में । इलेक्ट्रॉन स्थित अवस्था में स्टेटिक इलेक्ट्रीसिटी के रूप में होता है। सुवाहक में प्रवाहित रूप में करंट इलेक्ट्रीसिटी के रूप में तथा बादलों से होने वाले हेवी डीस्चार्ज की अवस्था में विद्युत् या लाइटनिंग के रूप में प्रकट होता है। ये स्टेटिक इलेक्ट्रीसिटी का उत्पादन सामान्यतः ऊनी कपड़े, पोलीथीन शीट, नाईलोन आदि को मामूली रगड़ लगने पर अथवा धोने के पश्चात् सूखने के बाद उलटने-पलटने पर होता हुआ दिखाई देता है। इससे आवाज के साथ-साथ चिनगारी (spark) भी निकलती है। विज्ञान के अनुसार यह इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा का प्रकाश की ऊर्जा के रूप में परिवर्तन है। विद्युत्-चुम्बकीय-क्षेत्र अथवा वि.चू. फिल्ड (Electro-magnetic-Field )
__ ओस्टेर्ड नामक वैज्ञानिक ने सन् 1819 में खोजा था कि जब सुचालक पदार्थ (जैसे धातु के तार) में से विद्युत्-प्रवाह गुजरता है तब उसके आस-पास एक विद्युत्-चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। यदि यह विद्युत्-प्रवाह तेज होता है तो उत्पन्न होने वाला विद्युत्चुम्बकीय-क्षेत्र भी तेज होता है। इस खोज के आधार पर भौतिक विज्ञान में एक नई शखा का उदय हुआ जिसमें "विद्युत्" और "चुम्बकीय" प्रभावों को जोड़कर उनके गुणधर्मों का अध्ययन प्रारम्भ हुआ। इसे "विद्युत-चुम्बकीयवाद" (electro-magnetism) के नाम से पुकारा गया। इसी पर आधारित "इलेक्ट्रो-डायनेमिक्स" में विद्युत्-चुम्बकीय प्रभावों के संबंध में नियमों आदि की खोज हुई। विद्युत्-प्रवाह के चुम्बकीय प्रभावों को नापने के लिए "बायो-सावर्ट" नियम आदि का प्रयोग किया जाता है। जैसे इलेक्ट्रीक चार्ज से इलेक्ट्रीक फील्ड और चुम्बक से चुम्बकीय फील्ड बनता है, वैसे ही विद्युत्-प्रवाह से विद्युत्चुम्बकीय फील्ड अस्तित्व में आता है। इसकी ऊर्जा "विद्युत्-चुम्बकीय ऊर्जा" के रूप में जानी जाती है।
विद्युत्-आवेश के चारों ओर विद्युत्-चुम्बकीय क्षेत्र का घेरा बना रहता है। गतिमान स्थिति में इस क्षेत्र की गति तरंग के रूप में होती है। इसका वेग भी प्रकाश के वेग जितना ही होता है। एक विद्युत्-आवेश दूसरे विद्युत्-आवेश पर एक बल (force) पैदा करता है। इस आधार पर विद्युत्-चुम्बकीय प्रेरण (electro-magnetic-induction) की क्रिया होती है।
जब चुम्बक के ऊपर तार को कुण्डली के रूप में बांधकर उसे घुमाया जाता है तो विद्युत्-आवेश एवं गतिमान चुम्बक के परस्पर संबंध के आधार पर विद्युत्-चुम्बकीय प्रेरण के कारण तार में विद्युत्-प्रवाह पैदा हो जाता है । 54 -
- तुलसी प्रज्ञा अंक 120-121
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