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बसु ने प्रयोगशाला में 5 मिलीमीटर से 25 मिलीमीटर तक की तरंग दैर्ध्य वाली तरंगों को पैदा करने में सफलता प्राप्त की थी, जिन विद्युत्-तरंगों के आधार पर ही आधुनिक "दूर-संचार" की प्रक्रिया का विकास संभव हुआ । आजकल छोटी तरंगों में 100 मीटर जितनी तथा बड़ी तरंगों में 10 लाख मीटर तक की दैर्ध्य वाली तरंगों का प्रयोग रेडियो तरंगों में या दूर - संचार में किया जाता है। इन रेडियो तरंगों के फलस्वरूप एक क्रांति दूर संचार क्षेत्र में आई है।
आयनीकृत वायु में विद्युत् का निरावेशीकरण
सामान्यत: सूखी और रजकण-मुक्त शुद्ध हवा सामान्य वातावरणीय दबाव पर विद्युत् की कुचालक होती है। इसका कारण यह है कि उसमें उस स्थिति में कोई भी स्वतंत्र आयन नहीं होते- न धन आयन होते हैं, न ऋण आयन । इसलिए उसमें से कोई विद्युत् प्रवाह नहीं गुजर सकता। यदि किसी कारण से उसका आयनीकरण हो जाए, तो वह विद्युत् की सुचालक बन जाती है। आयनीकरण का एक कारण है - उसमें रहे हुए दो धातु के इलेक्ट्रोड के बीच विद्यमान उच्च वाल्टेज यानि विद्युत् स्थितिमान का अन्तर या पोटेन्शियल डिफ्रेंस ।
इस प्रकार किसी नलिका में भरे हुए वायु में छोर पर रहे हुए दो धातु के इलेक्ट्रोड के बीच जब उच्च वाल्टेज स्थापित किया जाता है तब वायु का आयनीकरण हो जाता है । उसमें विद्युत् का निरावेशीकरण हो सकता है, जो एक विद्युत् चुम्बकीय तरंग या ऊर्जा के रूप में दिखाई देता है। इसे सामान्यतः एक स्पार्क के रूप में देखा जाता है। इसी प्रक्रिया का प्रयोग नलिका में रही हुई गैस के प्रेसर को ज्यादा कम कर विभिन्न रूपों में किया जाता है।
नलिका में रही हुई वायु या किसी भी प्रकार के वाष्प (vapour) के प्रेसर को कम करने के लिए वेक्यूम पम्प का इस्तेमाल किया जाता है। उसकी विभिन्न स्थितियां बनती हैं। 1. जब तक ट्यूब के भीतर का प्रैशर 10 मी.मी. (पारे का ) भी अधिक होता है तब तक गैस में कोई निरावेशन नहीं (discharge) होता यानि तब तक वायु कुचालक ही बनी रहती है।
2. जब भीतर का प्रेसर 10 मि.मि. से कम किया जाता है, तब दोनों इलेक्ट्रोड के बीच वायु में से विद्युत का निरावेशन होता है तथा उस समय कड़- कड़ ध्वनि भी पैदा होती है। ध्वनि भी ऊर्जा का एक विकिरण है ।
3. जब भीतर का दबाव 5 एम. एम. से कम किया जाता है, विद्युत का निरावेशन तेज प्रकाश के रूप में होता है ।
4.2 मि.मि. के लगभग प्रेशर किए जाने पर एक लंबी चमकदार प्रकाश - धारा धन इलेक्ट्रोड (एनोड) से लगभग ऋण इलेक्ट्रोड (केथोड) तक बहती है तथा केथोड के समीप एक नकारात्मक चमक पैदा होती है। इसके और प्रकाशधारा के बीच सम्पूर्ण अंधकार दिखाई देता है ।
5. जब प्रेशर लगभग 1 मि.मि. तक कम कर दिया जाता है तो टूटी हुई धारा के बीच धब्बे उभरते हैं। कहीं प्रकाश, कहीं अंधकार इस प्रकार का क्रम बनता है ।
तुलसी प्रज्ञा अप्रेल - सितम्बर, 2003
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