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6. जब प्रेसर .01 मि.मि. का दिया जाता है, तब पूरी नलिका फिर अंधकारमय हो जाती है। उस समय केथोड़ से एक अदृश्य कण विकिरित होते हैं, जिन्हें केथोड किरणें कहा जाता है। ये केथोड किरणें जब सामने वाले काच के छोर पर गिरती हैं तब वह चमक उठता है। यह चमक प्रतिदीप्ति प्रक्रिया के कारण होती है।
7. जब प्रेशर 104 मि.मि. से कम किया जाता है, तब निरावेशन लगभग समाप्त-सा हो जाता है।
इसी प्रक्रिया का उपयोग फ्लोरेसेंट ट्यूब (ट्यूबलाइट), नियोन साईन, फ्लडलाइट्स, मयूरी लेम्प्स, सोडियम लेम्प्स आदि में किया जाता है। इस संबंध में अधिक चर्चा इस लेख के 10वें सेक्शन में की जाएगी।
क्रमशः अगले अंक में
सन्दर्भ ग्रन्थ : 1. मुनि यशोविजय - विद्युत सजीव या निर्जीव ? (द्वितीय आवृत्ति), पृ. 8 पर उद्धृत। 2. वही, पृष्ठ 8 पर उद्धृत - आचारांग, 5/5/165 3. आचार्य तुलसी, जैन सिद्धान्त दीपिका, 1/14
आचार्य पूज्यपाद, सर्वार्थसिद्धि, 5/33 बाह्यान्तरकारणवशात् स्नेहपर्यायाविर्भावात् स्निह्यते स्मेति स्निग्धः ... । स्निग्धत्व चिक्कणगुणलक्षणपर्यायः । - बाह्य और आभ्यन्तर कारण से जो स्नेह पर्याय उत्पन्न होती है, उससे पुद्गल स्निग्ध कहलाता है। (जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश - "स्निग्ध शब्द' में उद्धृत) प्रज्ञापना सूत्र (पण्णवणा), पद 13, सूत्र 21-22 "अजीवपरिणाम-पदं सूत्र 21. अजीवपरिणामे णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते? गोयमा! दसविहे पण्णत्ते, तं जहा-बंधणपरिणामे गतिपरिणामे संठाणपरिणामे भेदपरिणामे वण्णपरिणामे गंधपरिणामे रसपरिणामे फासपरिणामे अगरुयलहुयपरिणामे सद्दपरिणामे ॥ सूत्र 22. बंधणपरिणामे णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते, तं जहांनिद्धबंधणपरिणामे य लुक्खबंधणपरिणामे य। गाहासमणिद्धयाए बंधो ण होति, समलक्खयाए वि ण होति । वेमायणिद्ध-लुक्खत्तणेण बंधो उ खंधाणं ॥1॥ णिद्धस्स णिद्धेण दुयाहिएणं, लुक्खस्स लुक्खेण दुयाहिएणं । णिद्धस्स लुक्खेण उवेइ बंधो, जहण्णवज्जो विसमो समो वा ॥ 2 ।। आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती, गोम्मटसार, गाथा 615 "णिद्धस्स णिद्धेण दुराहिएण, लुक्खस्स लुक्खेण दुराहिएण।
णिद्धस्स लुक्खेण हवेज्ज बंधो, जहण्णवज्जे विसमे समे वा। 58
- तुलसी प्रज्ञा अंक 120-121
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