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१. हाइड्रोजन का परमाणु क्रमांक एक (1) है ।
२. ऑक्सीजन का परमाणु क्रमांक 8 है तथा परमाणु - भार 16 है, क्योंकि उसके परमाणु में 8 इलेक्ट्रोन 8 प्रोटोन और 8 न्यूट्रोन होते हैं ।
३. तांबा धातु है । धातुओं की विशिष्ट परमाणु-रचना के कारण उसमें विद्युत् का प्रवाह आसानी से चल सकता है। तांबे का परमाणु क्रमांक 29 है। उसका परमाणु- भार है, क्योंकि उसके परमाणु में 29 इलेक्ट्रोन, 29 प्रोटोन और 35 न्यूट्रॉन होते हैं। (सभी मूल पदार्थों के परमाणु में कितने-कितने इलेक्ट्रोन आदि होते हैं तथा प्रत्येक मूल पदार्थ का परमाणु क्रमांक एवं परमाणु- भार कितना है, उसके लिए " Periodic Table" द्रष्टव्य है, जो परिशिष्ट में दिया गया है ।)
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प्रत्येक परमाणु में इलेक्ट्रोन और प्रोटोन की संख्या समान होती है और न्यूट्रोन विद्युत्आवेश रहित होते हैं, इसलिए परमाणु स्वयं भी विद्युत् आवेश-रहित ही होता है। किन्तु जब परिधिगत इलेक्ट्रोन परमाणु से मुक्त होकर बाहर निकल जाता है, तब वह ऋण आवेश वाला स्वतंत्र कण बन जाता है तथा जिस परमाणु से वह निकला है, वह धन-1 -विद्युत् आवेश वाला 'आयन" बन जाता है। धातुओं में परमाणु की अंतिम परिधि से ऐसे स्वतंत्र इलेक्ट्रोन निकलते रहते हैं। दरअसल में जब धातु - पदार्थ का निर्माण होता है, तब उसके घटक परमाणुओं में से " वेलेन्स " इलेक्ट्रोन अपने-अपने पितृ - परमाणुओं से मुक्त होकर स्वतंत्र विचरण करते हैं । विद्युत् प्रवाह की व्याख्या में बताया गया है" - " इलेक्ट्रोन धातु अणु-गुच्छों (molecules ) 40 के बीच की खुली जगह में अस्त-व्यस्त गति करते रहते हैं । जिन परमाणुओं से ये इलेक्ट्रोन मुक्त हुए हैं, वे अब धन आवेश वाले बन जाते हैं। इन्हें " आयन" कहा जाता है । धातुओं की अपनी विशिष्ट संरचना होती है जिनमें सारे परमाणु स्फटिक (crystal) की भांति व्यवस्थित स्थित होते हैं ।" आयन ( धन आवेश वाले परमाणु) इस स्फटिक रचना में अपने नियमानुसार निश्चित स्थान ग्रहण कर लेते हैं। इस निश्चित आकृति के कारण एक विशेष भौमितिक संरचना बन जाती है। अब, जैसे बताया गया कि जब मुक्त इलेक्ट्रोन आयनों के बीच के अवकाश में अस्त-व्यस्त गति करते रहते हैं, तब धातु जो विद्युत् का सुवाहक है, में विद्युत् का प्रवाह नहीं बहता है। पर यदि धातु के दोनों छोर पर वोल्टेज में अन्तर रखा जाए तो धातु जो विद्युत् की सुचालक (conductor) होती है, में विद्युत् क्षेत्र (electric field)± पैदा होता है। इलेक्ट्रोनों पर इस क्षेत्र की विरोधी दिशा में बल (force) लगता है और वे उस दिशा में ढकेल दिए जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप एक विद्युत् प्रवाह (electric current)43 सुचालक धातु में बहना शुरू होता है । सुचालक पदार्थ के किसी भी तिरछे काट में से प्रति इकाई समय में गुजरने वाले विद्युत् आवेश की संहति को विद्युत् प्रवाह मापक के रूप में माना जाता है । "
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तुलसी प्रज्ञा अंक 120-121
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