________________
लागत से कहीं अधिक हैं। सामान्यतया ये प्राप्तियाँ 8 से 10 प्रतिशत तक अधिक हैं जो शिक्षा में विनियोग को उपयोगी सिद्ध करती हैं। भारत में उच्च शिक्षा पर और अधिक विनियोग की आवश्यकता
सांस्कृतिक विभिन्नता एवं सामाजिक, आर्थिक भिन्नताओं वाला भारत उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अभी भी असंतुलन के दौर से गुजर रहा है। माध्यमिक शिक्षा से अधिक शिक्षा ग्रहण करने योग्य आयु समूह में 1971 में जहाँ 1000 में से मात्र 2 व्यक्ति शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, 1981 में यह संख्या 4 व वर्तमान में 6 से 8 तक है। भारत वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिक मानव संसाधन की दृष्टि से दुनियाँ का तीसरा बड़ा देश है, पर ऐसी मानव शक्ति यहाँ प्रति दस हजार में से 6 है जबकि रूस में 115 व जापान में 190 है। उच्च शिक्षा पर व्यय भी काफी असंतुलित है। एक व्यक्ति के व्यावसायिक शिक्षा की लागत एक सौ छात्रों की प्राथमिक शिक्षा एवं एक हजार व्यक्तियों की निरक्षरता हटाने की कुल लागत से अधिक है। 200 से भी अधिक विश्वविद्यालय एवं 7000 से भी अधिक महाविद्यालयों में पांच मिलियन से भी अधिक छात्र अध्ययनरत हैं तथा इनकी वार्षिक विकास दर 4 प्रतिशत है जबकि अभी तक उच्च शिक्षा प्राप्त करने योग्य आयु समूह में मात्र 10 प्रतिशत को ही उच्च शिक्षा उपलब्ध है। प्राय: यह भी कहा जाता है कि छात्रों का सामाजिक स्तर जितना निम्न होता है उतने ही बड़े अनुपात में वे उच्च शिक्षा को छोड़ देते हैं। उनके द्वारा उच्च शिक्षा ग्रहण न करने का यह अर्थ नहीं है कि उनमें उच्च शिक्षा ग्रहण करने की योग्यता ही नहीं है। इनमें से ऐसे बहुत से विद्यार्थी होते हैं, जिन्हें यदि उच्च शिक्षा प्राप्ति का अवसर मिलता तो वे वस्तुत: उन विद्यार्थियों से अधिक सफल होते जो वर्तमान में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। उच्च शिक्षा ग्रहण करने वालों को तो वस्तुत: उच्च शिक्षा की आवश्यकता ही नहीं है, क्योंकि उनका उद्देश्य सामाजिक, आर्थिक एवं राष्ट्रीय विकास नहीं बल्कि व्यक्तिवादी या उपाधि ग्रहण करना है। राष्ट्रीय विकास के लिए वे छात्र अधिक उपयोगी होते हैं, जिन्हें वस्तुतः उच्च शिक्षा का अवसर ही नहीं मिला तथा वे सामाजिक या आर्थिक कारणों से उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं कर सके। सर्वेक्षणों के पश्चात् यह निष्कर्ष सामने आया है कि परिवार की पृष्ठभूमि एवं समाज के सांस्कृतिक प्रतिमानों से निकट संबंध रखने वाले सामाजिक कारक छात्रों की शैक्षिक परिलब्धियों पर निश्चित रूप से प्रभाव डालते हैं।
वर्ष 1985-90 में उच्च शिक्षा के विकास के लिए 40 से 50 प्रतिशत विकास अनुदान दिया गया जो कि महाविद्यालयों के लिए 4 से 8 लाख तथा विश्वविद्यालयों के लिए 100 से 150 लाख था। इस अनुदान का अधिकतर उपयोग भवन एवं प्रयोगशाला निर्माण तथा विज्ञान की शिक्षा पर हुआ जबकि अध्यापन, शोध, विस्तार आदि प्रवृत्तियों पर और भी विनियोग की अपेक्षा है। इस सन्दर्भ में उच्च शिक्षा को आर्थिक सहायता या सरकारी
22
-
- तुलसी प्रज्ञा अंक 120-121
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org