Book Title: Tulsi Prajna 2003 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 7
________________ संघात के पश्चात् भेद- - यह शक्ति केवल पुद्गलास्तिकाय में है । दो परमाणु मिलकर द्विप्रदेशी यावत् अनन्त परमाणु मिलकर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध बन जाते हैं। पुनः वियुक्त होकर वे दो परमाणु यावत् अनन्त परमाणु हो जाते हैं । यदि पुद्गल में संयोग-वियोग गुण नहीं होता तो यह विश्व या तो एक पिण्ड ही होता या केवल परमाणु ही होता। उन दोनों रूपों से वर्तमान विश्व - व्यवस्था फलित नहीं होती । पुद्गल द्रव्य रूपी है, इन्द्रियगम्य है, इसलिए इसका अस्तित्व बहुत स्पष्ट है पर इसकी स्वतंत्र सत्ता का आधार यह संघात - भेदात्मक गुण है । 10 जीव और पुद्गल - इन दोनों अस्तिकायों के योग से विश्व की विविध परिणतियां होती हैं ।" तीन अस्तिकाय अपनी स्वरूप-मर्यादा तक ही परिवर्तित होते हैं । वे बाह्य निमित्तों से प्रभावित नहीं होते और न वे दूसरे द्रव्यों को प्रभावित करते हैं । 1 पुद्गल की द्विरूपता पुद्गल परमाणु एवं स्कन्ध के भेद से दो प्रकार का है। 12 यह दृश्य जगत्पौद्गलिक जगत् परमाणु संघटित है । परमाणुओं से स्कन्ध बनते हैं और स्कन्धों से स्थूल पदार्थ का निर्माण होता है। पुद्गल में संघात एवं भेद – ये दोनों शक्तियाँ हैं । परमाणुओं के संयोग से स्कन्ध बनते हैं। स्कन्ध के टूटने से अन्य अनेक स्कन्ध भी बन जाते हैं। स्कन्ध के टूटने से परमाणु भी बन जाते हैं। 14 दो परमाणु पुद्गल के मिलने से द्विप्रदेशी स्कन्ध बनता है और द्विप्रदेशी स्कन्ध के टूटने से दो परमाणु बन जाते हैं। ऐसे ही तीन परमाणु मिलने से त्रिप्रदेशी स्कन्ध बनता है और उनके टूटने से दो प्रकार की उत्पत्ति हो सकती है - तीन पृथक्-पृथक् परमाणु अथवा एक परमाणु और एक द्विप्रदेशी स्कन्ध । इस प्रकार संघात एवं भेद से स्कन्ध का निर्माण होता है 15 तथा अणु भेद से ही उत्पन्न होता है । परमाणु के योग से स्कन्ध का निर्माण होता है । दो परमाणुओं का योग द्विप्रदेशी स्कन्ध, तीन परमाणुओं का त्रिप्रदेशी स्कन्ध यावत् अनन्त परमाणुओं का योग अनन्त प्रदेशी स्कन्ध कहलाता है। स्कन्ध का कारण परमाणु है । I नयचक्र में परमाणु का कारण और कार्य – दोनों रूपों में निर्देश किया गया है। " परमाणु के योग से स्कन्ध की उत्पत्ति होती है, अत: परमाणु स्कन्ध कारण है। स्कन्ध के टूटने से परमाणु अपने मूल रूप में चला जाता है, अतः परमाणु स्कन्ध का कार्य है । भगवती में परमाणु एवं स्कन्ध की एजन, व्येजन आदि क्रियाओं का उल्लेख है। 17 परमाणु का स्कन्ध रूप में परिणमन एजन आदि क्रियाओं से ही होता है। परमाणु और स्कन्ध में एजन आदि क्रिया होती है तो वे विभिन्न अवस्थाओं में परिणत होते हैं - तं तं भावं परिणमति । 18 एजन आदि क्रियाओं के अभाव में वे विभिन्न अवस्थाओं में परिणत नहीं होते – नो तं तं भावं परिणमति । ” परमाणु और स्कन्ध में कदाचित् एजन होता भी है और नहीं भी होता है। यहां भी अनेकान्त की वक्तव्यता है । 2 Jain Education International For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा अंक 119 www.jainelibrary.org

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