Book Title: Tulsi Prajna 2003 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 72
________________ जलों से मानव के आरोग्य व धान्य आदि सभी कामनाओं की पूर्ति होती है-आपो वै सर्वे कामाः। __ अपने अमृत और भैषज आदि गुणों के कारण जल "शिवोरस" ही नहीं अपितु "शिवतमो रस" है। जलों ने माता तुल्य मानव जाति पर उपकार किया है। मानव तो केवल उसका पुत्र है-आपस्पुत्रासो।। ऋषि सिन्धुद्वीप आप: देवता से प्रार्थना करते है कि जिस प्रकार अभिलाषापूर्वक माताएं अपने पुत्र को स्तनों का रस (दूध) पिलाकर पुष्ट करती हैं, हे जलो। उसी प्रकार तुम्हारा जो परम कल्याणकारी प्रसिद्ध रस अर्थात् सारभूत अंश हैं उससे हम पुत्र रूपों की सेवा करो यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः। उशतीरिव मारतः॥1 मानव जलों का पुत्र है, अतएव माता रूप जलों के संरक्षण के प्रति उसका विशेष दायित्व है। जल संरक्षण के लिए जलों के प्रति श्रद्धा, ज्ञान व समुचित नीति का होना आवश्यक है। वेदों में इस ओर विशेष ध्यान दिया गया है। वैदिक ऋषियों का अग्नि की आराधना और उसके मन की प्रसन्नता को बनाये रखने का विशेष आग्रह था। ऋग्वेद ऋग्वेद के अनुसार अग्नि हंसों के समान जलों में बैठकर प्राण धारण करता है, अतएव ज्ञानी पुरुष जलों के मध्य में स्थित अग्नि की घर की तरह पूजा करके काम करते हैं। उपर्युक्त कथन से स्पष्ट है कि आर्य जलों को प्रदूषित करने के विषय में सोच भी नहीं सकते थे। उसके लिए जलों में स्थित अग्नि घर के तुल्य पूजनीय थी अर्थात् जिस प्रकार घर को स्वच्छ रखा जाता है उसी प्रकार जलों को स्वच्छ रखते थे। ऋग्वेद23 ऋग्वेद ने स्पष्ट कहा हैं कि यदि सभी लोग जल को प्रदूषण से मुक्त रखें तभी जल की अग्नि मानव को तेज, प्रजा और दीर्घायु प्रदान कर सकती है। अथर्ववेद24 अथर्ववेद में ऐसी कामना की गयी है कि आकाश के मेघमण्डल से प्राप्त होने वाले और पृथ्वी पर बहने वाले जल प्रवाह मानव के लिए शान्ति देते हए बहें । इसका तात्पर्य हैं कि मानव बहते हुए जलों को कभी प्रदूषित न करें। अथर्ववेद के अनुसार वैदिक कार्य जलों के प्रति ऐसी नीति अपनाने पर विश्वास करते थे जिससे जल प्रदूषण मुक्त रहकर आयुर्वृद्विदायक हों तथा माता के समान कल्याणकारी हों। जल में फैलने वाली कमियों को दूर करने वाली अजशृंगी, गुग्गुल, पीलु, मांसी, औक्षगन्धी तथा प्रमोदिनी आदि औषधियों तथा पीपल, वट, शिखण्डी और अर्जुन आदि वृक्षों द्वारा जलों को प्रदूषण मुक्त रखने का उल्लेख अथर्ववेद में प्राप्त होता है जो वेदों की जल संरक्षण चेतना का उत्कृष्ट उदाहरण है। तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2003 - - 67 003 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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