Book Title: Tulsi Prajna 2003 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 27
________________ निर्धारित कर लिया) परिचित कर लिया, घोष सम (अर्थात् सही उच्चारण युक्त) कर लिया, जिसे वह हीन अधिक और विपर्यस्त-अक्षर रहित, अस्खलित, अन्य वर्गों से अमिश्रित, अन्य ग्रंथ वाक्यों से अमिश्रित, प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्णघोषयुक्त, कण्ठ और होठ से निकला हुआ तथा जिसे गुरु की वाचना से प्राप्त किया जाता है, वह आवश्यक-पद के अध्यापन, प्रश्न, परावर्तन और धर्मकथा में प्रवृत्त होता है तब आगमत: द्रव्यावश्यक है। वह अनुप्रेक्षा (अर्थ के अनु चिन्तन) में प्रवृत्त नहीं होता, क्योंकि द्रव्यनिक्षेप अनुपयोग (अर्थात् चित्त की प्रवृत्ति से शून्य) होता है। सारांश यह है कि जो आगम को जानता है किन्तु तत्सम्बन्धी ज्ञान का वर्तमान में उपयोग नहीं कर रहा वह आगम तो द्रव्यावश्यक है। विशेषावश्यक भाष्य में इसे उदाहरण देकर इस प्रकार समझाया गया है - एक पुरुष मंगल शब्द के अर्थ को जानता है और मंगल शब्द से अनुवासित है किन्तु मंगल शब्द के अर्थ में उपयुक्त (अर्थात् दत्तचित्त) नहीं है, वह आगम-ज्ञान की अपेक्षा द्रव्यमंगल है। 2. नोआगमतोद्रव्यावश्यक-नो आगमतः द्रव्यावश्यक के तीन प्रकार हैं1. ज्ञ शरीर-द्रव्य-आवश्यक 2. भव्य-शरीर-द्रव्य-आवश्यक 3. ज्ञ शरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्य आवश्यक विशेषावश्यक भाष्य में इसे उदाहरण देकर इस प्रकार समझाया है - मंगल शब्द के अर्थ को जानने वाला पुरुष का मृतशरीर मंगल शब्द के अर्थ का ज्ञाता नहीं रहता, इसलिए वह ज्ञान के अभाव की अपेक्षा द्रव्यमंगल है। 'नौ' शब्द का प्रयोग सर्वनिषेध और देश-निषेध दोनों में होता है। वहाँ इसके दोनों अर्थ घटित हो सकते हैं। यहाँ द्रव्यनिक्षेप के आगमतः ज्ञानात्मक पक्ष पर सात नयों से विचार किया गया हैनैगमनय का विषय सामान्य और विशेष दोनों है, इसलिए उसके अनुसार द्रव्यावश्यक एक, दो, तीन यावत् लाख करोड़ कितने ही हो सकते हैं, जितने अनुपयुक्त हैं, वे सब द्रव्यावश्यक हैं। व्यवहार नय का विषय है विशेष अथवा भेद। यह लोक व्यवहार को मान्य करता है, इसलिए इसमें भी नैगम-नय की भांति द्रव्यावश्यक की संख्या का निर्देश किया जा सकता है। संग्रह-नय का विषय है- सामान्य । इसलिए उसमें द्रव्यावश्यक का राशिकरण हो सकता है, जैसे एक द्रव्यावश्यक और अनेक द्रव्यावश्यकों की राशि। ऋजुसूत्र का विषय है पर्याय। इसलिए उसके अनुसार एक अनुपयुक्त व्यक्ति आगमत: द्रव्यावश्यक है, बहुवचन इसे मान्य नहीं है। तीनों शब्द नयों का विषय है— शब्द। उसके अनुसार कोई व्यक्ति जानता है और उपयुक्त नहीं है- ऐसा हो नहीं सकता। अतः इसे आगमतः द्रव्यावश्यक नहीं है। अनुयोगद्वार सूत्र में शंख की तीन स्थितियों का वर्णन है। वहां प्रश्न पूछा गया है कि ज्ञशरीर, भव्यशरीर, व्यतिरिक्त, द्रव्य-शंख क्या है ? उत्तर में कहते हैं कि वह 'ज्ञ' शरीर, भव्यशरीर, व्यतिरिक्त, द्रव्य-शंख के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं" - 22 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 119 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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