Book Title: Tulsi Prajna 2003 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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8. अंगसुत्ताणि 2 (भगवई), 2/129 9. अंगसुत्ताणि 2 (भगवई), 2/129 10. आचार्य महाप्रज्ञ, जैन दर्शन और अनेकान्त, पृ. 23 11. जैन सिद्धान्त दीपिका, 1/9, जीवपुद्गलयोर्विविधसंयोगैः स विविधरूपः । 12. सभाष्यतत्त्वार्थाधिगम, 5/25, अणवः स्कन्धाश्च । 13. ठाणं, 2/221-225 14. सभाष्यतत्त्वार्थधिगम, 5/27, भेदादणुः । 15. वही, 5/26, संघातभेदेभ्य उत्पद्यन्ते। 16. नयचक्र (माइल्ल धवल), श्लोक 29 ---
जो खलू अणाइणिहणो, कारणरूवो हु कजरूवो वा।
परमाणुपोग्गलाणं सो दव्व सहावपज्जाओ। 17. अंगसुत्ताणि भाग-2 (भगवई), 5/510-153 18. वही, 5/150 19. वही, 5/151 20. ठाणं, 3/329 21. अंगसुत्ताणि 2 (भगवई), 5/160 22. ठाणं, 3/329-335 23. अंगसुत्ताणि 2 (भगवई), 20/37-38 24. वही, 5/160 25. प्रज्ञापनावृत्ति, प0 202-03, परमाणुर्हि अप्रदेशो गीयते, द्रव्यरूपतया सांशो न भवतीति........
कालभावाभ्यां सप्रदेशत्वेपि न कश्चिद् दोषः। 26. भगवतीवृत्ति, पत्र 241, यो द्रव्यतोऽप्रदेश: - परमाणुः स च क्षेत्रतो नियमादप्रदेशो, यस्मादसौ
क्षेत्रस्यैकत्रैव प्रदेशेऽवगाहते प्रदेशद्वयाद्यवगाहे तु तस्याप्रदेशत्वमेव न स्यात्, कालतस्तु यद्यसावेकसमयस्थितिक स्तदाऽप्रदेशोऽनेक समयस्थितिकस्तु सप्रदेश इति, भावतः
पुनर्यद्येकगुणकालकादिस्तदाऽप्रदेशोऽनेक-गुणकालकादिस्तु सप्रदेश इति। 27. अंगसुत्ताणि भाग 2 (भगवई), 20/41 28. तत्त्वार्थभाष्यानुसारिणी वृत्ति, 5/1, पृ. 318-319,..............ननु प्रसिद्धमेवेदमेकरसगन्धवर्णो ___द्विस्पर्शश्चाणुर्भवति, भावावयवैः सावयवो द्रव्यावयवैर्निरवयव इति। 29. अंगसुत्ताणि भाग 2 (भगवई), 5/161-164
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तुलसी प्रज्ञा अंक 119
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