Book Title: Tulsi Prajna 2003 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ 30. (क) अंगसुत्ताणि भाग 2 (भगवई) 5/205 (ख) भगवती वृत्ति, पत्र 241 31. अंगसुत्ताणि भाग 2 (भगवई), 14/49, परमाणुपोग्गले णं भंते! किं सासए? असासए? गोयमा! __सिय सासए, सिय असासए। 32. वही, 14/50 33. वही, 5/169 34. अंगसुत्ताणि 2 (भगवई), 5/169, परमाणुपोग्गले णं भंते। कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा। जहण्णेणं एगं समय, उक्कोसेणं असंखेजं कालं। एवं अणंतपएसिओ। 35. षट्खण्डागम, धवला, पु. 14, खण्ड-5, भा. 6, सू. 539, पृ. 450 तथा सूत्र 540, पृ. 451 36. अंगसुत्ताणि 2 (भगवई) 5/172 37. वही, 8/467-469 38. भगवती वृत्ति, पृ. 420 39. अंगसुत्ताणि 2 (भगवई), 5/757-158 40. वही, 5/159 41. अणुओगदाराइं, सूत्र 396, परमाणु दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुहुमे य वावहारिए य। 42. वही, सूत्र 398, वावहारिए-अणंताणं सुहुमपरमाणु-पोग्गलाणं समुदय-समिति-समागमेणं से एगे वावहारिए परमाणुपोग्गले निप्फज्जइ। 43. अनु.म.वृ.प. 148, ततोऽसौ निश्चयतः स्कन्धोऽपि व्यवहारनयमतेन व्यवहारिक: परमाणुरुक्तः । 44. भगवतीवृत्ति, पत्र 233, अत्थेगइए नो छिज्जेजत्ति सूक्ष्मपरिणामत्वात् । 45. (क) अणुओगदाराई, सूत्र 398 (ख) अनु.म.वृ.प. 148, इदमुक्तं भवति-यद्यप्यनन्तैः परमाणुभिर्निष्पन्नाः काष्ठादय: शस्त्रछेदादिविषया दृष्टास्तथाप्यनन्तकस्याप्यनन्त भेदत्वात् तावत् प्रमाणेनैव परमाण्वनन्तकेन निष्पन्नोऽसौ व्यावहारिक: परमाणुर्ब्रह्यो यावत् प्रमाणेन निष्पन्नोद्यापि सूक्ष्मत्वानशस्त्रछेदादिविषयतामासादयतीतिभावः । 46. भगवई (खण्ड-2), पृ. 191, भाष्यसूत्र 5/154-159 47. अंगसुत्ताणि 2 (भगवई), 1/401-406 48. वही, 1/401-403, 405-406 49. वही, 1/404 50. वही, 1/408 तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2003 - - 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122