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बैठकर चोपन अध्ययन का उपदेश दिया। पचपनवें समवायांग में कल्याण फल के पचपन अध्ययन की देशना दी। कल्याण अकल्याण फल के इस एक आगम के योग से चौरासी आगम की संख्या निष्पन्न हो गई।
२६ कालिक + ३० अकालिक + १ आवश्यक + ६ दसा + ५ भावना -- १ कल्याण अकल्याण फल +१२ अंग अध्ययन .. ८४ आगम ।
चौरासी आगम संख्या इस प्रकार आगम के प्रमाणों से पुष्ट होती है जिनके प्रमाण यहां स्पष्ट चर्चित किए गए हैं । चौरासी आगम का एक अन्य प्रकार जैन ग्रन्थावली में
पैंतालिस आगमों की मान्यता
जयाचार्य ने पैंतालिस आगमों की मान्यता पर समीक्षा करते हुए लिखा है-- एक बार मूर्तिपूजक भाई के साथ चर्चा में ४५ और ८४ आगम को कैसे मानते हैं उसका मघवागणी ने जयसुजस में उल्लेख किया है । '४५ माने ते स्वइच्छा पिण सूत्र में नहीं' ५ पैंतालिस मानने वालों की यह मान्यता स्वइच्छा से प्रेरित है किंतु किसी सूत्र में ऐसा निर्देश नहीं है। जो पैंतालिस मानते हैं उनकी दृष्टि के अनुसार पैतालिस आगम इस प्रकार हैं११ अंग
[ग्यारह अंग, बारह उपांग, दस पइन्ना, चार छेद, चार मूल, १२ उपांग तीन नियुक्तियां (पिड़ नियुक्ति, जीत कल्प, महनिशीथ) १० पइन्ना
व एक आवश्यक पैतालीस होते हैं। ऐसा जयाचार्य ने ४ छेद
उल्लेख किया है।] ४ मूल ३ नियुक्ति १ आवश्यक
पैतालिस की संख्या को जयाचार्य ने इस प्रकार उल्लिखित किया है।
पैंतालिस की मान्यता को 'जैनधर्म वरस्तोत्र' में किंचित् से भेद से इस प्रकार माना है। इक्कारस अंगाई ११ वारस उवगाइ २३ दस पयन्नाई ३३ ।।
छ छेय ३६ मूल चउरो ४३ नंदी अनुयोग पणयाला ४५ ।। - ग्यारह अंग, बारह उपांग, दश पइन्ना, छह छेद, चार मूल, नंदी और अनुयोग को मानकर पैंतालीस की संख्या पूरी की। जयाचार्य इस पर अपनी समीक्षा करते हुए लिखते हैं१६ --चउ सरण १, भक्त पइन्नो२, संथार पइन्नो३, जीतकल्प ४, पिंड नियुक्ति ५, मरण संथार ६–ये छह नाम सूत्र में नहीं हैं इसलिए अप्रामाणिक हैं। महानिशीथ में मिश्रण हो गया। उसमें परस्पर विरुद्ध आदेश है । अपवाद आसेवन की अनुमति है इसलिए उसको कैसे मान्य किया जाए, शेष जो बचे हैं उनकी भाष्य, चूणि, नियुक्ति,
खण्ड १६, अंक १ (जून, ६०)
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