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किसी सूत्र की प्रति में 'सुमिण भावणा' का और किसी में महामुमिण भावना का उल्लेख है । व्यवहार सूत्र की टीका के सारोद्धार में सुमिण भावना नहीं है, महासुमिण भावना है । कुछ प्रतियों में सुमिण भावना तो कुछ प्रतियों महासुमिण भावना है । लगता है कि उस समय सुमिण भावना और महासुमिण भावना एक ही ग्रन्थ के दो नाम रहे हों । व्यवहार सूत्र में जो उल्लेख किया गया उसीका नंदी की किसी प्रति में अवतरण कर दिया हो किन्तु टीकाकार ने एक का ही अर्थ किया, दूसरे की चर्चा नहीं की । अतः एक ही भावना के ग्रन्थ को मानना उचित है। नंदी की प्रतियों में 'आसीविस' आदि छह सूत्रों का उल्लेख मूल सूत्रों के साथ नहीं हैं, यदि नंदी में पहले ही उल्लेख होता तो साथ ही में इनका भी उल्लेख आ जाता। संभवत: ऐसा हो सकता है कि व्यवहार सूत्र में आए पांच नामों को तथा टीका में आई महासुमिण भावना को किसी ने नंदी की प्रति में अपनी सुविधा की दृष्टि से उल्लिखित कर दिया हो ।
दीप पन्नती, दीप सागर पन्नती, वन्नियाणं, वन्निदसाणं - इनको दो-दो गिनने से दो संख्या अधिक हो जाती है । व्यवहार के पांच और टीका की महासुमिण भावना को मिलाने से आठ संख्या हो जाती है । गुणचालीस में से आठ कम करने से इकतीस ही कालिक सूत्र होते हैं । इस प्रकार कालिक और उत्कालिक संख्या की मीमांसा की गई। है ।
चौरासी संख्या का निर्णय
दशवैकालिक आदि उनतीस कालिक आगम, उत्तराध्ययन आदि तीस उत्कालिक आगम, आचारांग आदि बारह अंग, एक आवश्यक सहित नंदी सूत्र में बहत्तर आगमों का उल्लेख है ।
स्थानांग के दसवें स्थान में 'दस दसा' का वर्णन है, जिसमें 'कम्मतिवाग दशा' वर्तमान में प्रचलित है । 'उपासग दसा' में दस श्रावकों का वर्णन है ।
'आचार दसा' दशाश्रुत स्कन्ध के रूप में है ।
'दश खेवित दसा' खुड्डिया विमाण विभत्ती आदि बेसमणोववाए पर्यन्त कालिक में उल्लिखित है । इनके अतिरिक्त जो हैं वे छह हैं, उनके नाम ये हैं
१. अन्तगड़ दसा
२. पण्हावागरणा दसा
६. अणुत्तरोववाइ दसा
४. वन्ध दसा
५. दो गिद्धि दसा
६. दीह दस
इन दसाओं में अलग वर्णन हैं । नंदी सूत्र से ये नाम अलग हैं । नंदी के बहत्तर, स्थानांग के छह जोड़ने पर अठहत्तर होते हैं । व्यवहार में आए हुए पांच दसाओं को और जोड़ देने से तिरासी संख्या होती है । समवायांग में भगवान् महावीर ने एक आसन में
तुलसी प्रज्ञा
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[ बीजी वाचना जाणवी ) (बीजी वाचना जाणवी )
पहावागरणा का वर्तमान स्वरूप आगम में वर्णित स्वरूप के अनुरूप नहीं है इसलिए हो सकता है कि यह वाचना अन्य हो । ]
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