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इन सभी प्रत्यक्ष, परोक्ष परिणामों को देखते हुए यह जिज्ञासा होना स्वाभाविक है कि फिर व्यक्ति हिंसा क्यों करता है। इस परिप्रेक्ष्य में विभिन्न दृष्टियों से कारणों का विश्लेषण महत्त्वपूर्ण रहेगा।
हिंसा का कारण-हिंसा एक है, कारण असंख्य हैं। कर्मवाद की भाषा में, "कम्ममूलं"१२ च जं छणं । हिंसा का मूल कारण है पूर्वकृत कर्मों का विपाक । विज्ञान की भाषा में रासायनिक असंतुलन । भगवान महावीर ने १३ कारण का एक वर्गीकरण प्रस्तुत किया
'इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए,
जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपहिचायहेउं ।' वर्तमान जीवन के लिए, प्रशंसा, सम्मान और पूजा के लिए, जन्म-मरण के लिए, दुःख प्रतिकार के लिए (मनुष्य हिंसा करता है)।
जिजीविषा-प्राणियों में अनेक प्रकार की एषणाएं होती हैं, उनमें जीने की इच्छा अत्यधिक प्रबल और प्रथम है । जीने का अभीप्सु मनुष्य परिग्रहण का संचय करता है । क्रूरकर्म और हिंसा करता है। इस प्रकार जिजीविषा कर्म का स्रोत है, यह दुःख का आवर्त है। इसके साथ-साथ वह जीवन के पोषणार्थ, सम्मानार्थ, पूजनार्थ, जन्म-मृत्यु और बंधन मुक्ति के लिए तथा दु:ख निवारण के लिए भी हिंसा कर्म करता है । ये सभी निमित्त हिंसा के प्रबल कारण बनते हैं । __ इनका वर्गीकरण प्रश्नव्याकरण" सूत्र में उपलब्ध होता है
१. क्रोध, २. मान, ३. माया, ४. लोभ, ५. हास्य, ६. वैर, ७. रति, ८. अरति, ६. शोक, १०. योग, ११. अर्थ, १२. कर्म, १३. धर्म, १४. पराधीनता और १५. मोह । ___जैन-दर्शन में संपूर्ण प्राणीजगत् को दो भागों में विभक्त किया गया है -१. स्थावर, २. त्रस। इनकी हिंसा का प्रयोजन भी अनुभूतगभितगद्य में निरूपित किया गया है'इच्चत्थं गढिए लोए।' ___जमिणं विरूवरूवेहिं सत्येहिं पुढवि-कम्म-समारंयेणं पुढवि-सव्यं समारंमेवाणे अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिंसई ।' मनुष्य जीवन आदि के लिए (पृथ्वीकायिक जीव निकाय की) हिंसा में आसक्त होता है। वह नाना प्रकार के शस्त्रों से पृथ्वी संबंधी क्रिया में व्याप्त होकर पृथ्वी कायिक जीवों की हिंसा करता है। वह केवल उन्हीं की हिंसा नहीं करता किन्तु नाना प्रकार के अन्य जीवों की भी हिंसा करता है—'हिंसाविवेगपदं ।'
से बेमि-अप्पेगे................. "वहंति ।' प्रस्तुत सूत्र में त्रसजीवों के हिंसा के कारणों की चर्चा की गई है। लोग मांस, रक्त, हृदय, पित्त, चर्बी, पंख, पूंछ, केश, सींग, दांत, दाढ़, नख, स्नायु, अस्थि और मज्जा आदि के लिए अनेक जीवों का वध करते हैं। लोग प्रयोजनवश ही हिंसा नहीं करते, बिना प्रयोजन के भी हिंसा में प्रवृत्त होते हैं । प्रतिशोध, प्रतिकार और आशंका के वशीभूत होकर लोग हिसा करते हैं।
मनुष्य सुन्दर दीखने के चक्कर में न जाने कितने जानवरों की सौंदर्य प्रसाधन२२
तुलसी प्रज्ञा
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