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कालिदास के नाटकों में लोक-विश्वास
- गोपाल शर्मा*
संस्कृत साहित्य के प्रणेताओं ने तत्कालीन राजनैतिक वातावरण के प्रभाव से तृपतियों के भोग-विलास तथा उनके ऐश्वर्य का वर्णन अवश्य किया, किन्तु साथ ही उस काल के जन-जीवन की सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक स्थिति का यथार्थ चित्रण भी प्रस्तुत किया है। लौकिक संस्कृत साहित्य के शीर्षस्थ स्रष्टा कविकुलगुरु कालिदास के नाटकों में राजप्रासादों में निवसने वाले राजाओं, रानियों और उनकी विलासिता के वर्णन के साथ ही लोकप्रतिनिधि दास-दासी, धीवर और गांवों में रहने वाले कोल-किरातों, कृषकों तथा निकृष्ट कोटि का जीवन जीने वालों के विश्वास-आस्थाओं एवं मान्यताओं के अकृत्रिम सौन्दर्य की पुनीत छवि झलकती है।
उच्च एवं धन-सम्पन्न कुलों में भी लोक-विश्वास पाये जाते हैं। राजा-महाराजाओं एवं अन्य उच्चवर्गीय कुलों में लोक-प्रतिनिधि दास-दासी, चेटी, विदूषक एवं कंचुकी के माध्यम से लोक में प्रचलित विश्वास पहुंच जाते हैं। संभवतः कालिदास के समय में भी समाज में परियों (अप्सराओं) की लोक-कथाएं प्रचलित रही होंगी। अतः कवि ने "विक्रमोर्वशीयम्" में ऋग्वेद की उर्वशी-पुरुरवा' की कथा को नाटक के रूप में विकसित किया, जो संभवतः उस समय लोक प्रचलित कथा भी रही हो। श्री काले महोदय "मालविकाग्निमित्र" की कथा वस्तु को लोक प्रचलित कहानी मानते हैं, जो कालिदास के समय में अग्निमित्र के अन्तःपुर में किसी राजकुमारी के प्रच्छन्न निवास को रोमानी कहानी के रूप में लोक प्रचलित रही होगी।
मानव-जीवन के निर्माण में लोक-मान्यताओं एवं लोक-विश्वासों का सदा से महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। आंगिक-मानसिक विकार, प्राकृतिक-परिवर्तन एवं वस्तु व्यापार को जन-सामान्य भावी शुभ-अशुभ के संकेत के रूप में ग्रहण करता था, जिसे लोक-जीवन में शकुन कहा गया है। नारी के बाएं एवं पुरुष के दाएं अंग में स्फुरण शुभ तथा नारी के दाएं एवं पुरुष के बाएं अंग में स्फुरण अशुभ माना जाता है । मालविकाग्निमित्र के पंचम अंक में मालविका की बाईं आंख का स्फुरण एवं विदर्भदेश की कन्याओं-मदनिका एवं ज्योत्स्निका के जी का खिलना भावी शुभ घटना के सूचक हैं, और मालविका अग्निमित्र की रानी बनती है । 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' के प्रथम अंक में जब राजा दुष्यन्त कण्व के तपोवन में प्रवेश करने लगे तब उनकी दक्षिण बाहु में *बरिष्ठ शोध अध्येता, संस्कृत विभाग, सुखाड़िया वि०वि०, उदयपुर । मण्ड १६, अंक १ (जून, ६०)
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