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(३) ठण्डा तथा रूक्ष, (४) ठण्डा तथा स्निग्ध ।
एक परमाणु में पांच रसों में से कोई एक रस, दो गंधों में से कोई एक गंध तथा पांच वर्णों में से कोई एक वर्ण हो सकता है । इस प्रकार परमाणु के कुल ( ४×५x२ x ५ ) - २०० भेद हो सकते हैं । या हम कह सकते हैं कि उपरोक्त के आधार पर परमाणु २०० प्रकार के होते हैं। परमाणु के इन गुणों की तीव्रताओं के आधार पर यदि इनका वर्गीकरण करें तब तो उनके अनन्त भेद हो जायेंगे । उदाहरण के लिए एक परमाणु में एक इकाई काला वर्ण है, दो इकाई काला वर्ण है, इत्यादि इत्यादि । इसी प्रकार उसमें काले वर्ण की तीव्रता अनन्त इकाइयों तक हो सकती है। किसी एक परमाणु में काले रंग की तीव्रता में हानि-वृद्धि हो सकती है, लेकिन वर्ण काला ही रहेगा, कोई दूसरा नहीं हो सकता । इसी प्रकार अन्य गुणों की तीव्रता में भी हानि - वृद्धि हो सकती है ।
परमाणुओं के जिन १०० भेदों का ऊपर वर्णन किया है वह उनके गुणों के आधार पर है । एक परमाणु विभिन्न गुणों के एक सेट ( Set ) का धारक है, दूसरा परमाणु गुणों के दूसरे सेट का धारक है, इस प्रकार गुणों के २०० सेट हैं। यहां एक प्रश्न यह है कि क्या एक परमाणु से संबद्ध गुणों का एक सेट उस परमाणु का मूलभूत गुण है या फिर वह सेट बदल भी सकता है ? जैसे-- एक परमाणु में किसी समय ठण्डा गुण है, क्या अगले पल उसका यह गुण गरम हो सकता हैं ? इस सम्बन्ध में कुछ व्याख्याएं विद्वानों ने दी हैं । उनके अनुसार - 'पुद्गल द्रव्य के एक अणु में जितनी शक्तियां हैं। उतनी हैं और वैसी ही शक्तियां परिणमन योग्यता अन्य पुद्गलाणुओं में है । मूलतः पुद्गल - अणु द्रव्यों में शक्ति भेद, योग्यता भेद या स्वभाव भेद नहीं है । यह तो सम्भव है कि कुछ पुद्गलाणु मूलतः स्निग्ध स्पर्श वाले हों और दूसरे मूलतः रूक्ष, कुछ शीत और कुछ उष्ण, पर उनके ये गुण नियत नहीं, रूक्ष गुण वाला भी स्निग्ध गुण वाला बन सकता है तथा स्निग्ध गुण वाला भी रूक्ष । शीत भी उष्ण बन सकता है, उष्ण भी शीत । तात्पर्य यह कि पुद्गलाणुओं में ऐसा कोई जाति भेद नहीं है जिससे किसी भी पुद्गलाणु का पुद्गल संबन्धी कोई परिणमन न हो सकता हो । पुद्गल द्रव्य के जितने भी परिणमन हो सकते हैं उन सबकी योग्यता व शक्ति प्रत्येक पुद्गलाणु में स्वभावतः है, यही द्रव्य शक्ति कहलाती है । स्कन्ध अवस्था में पर्याय शक्तियां विभिन्न हो सकती हैं । जैसे किसी अग्नि स्कन्ध में सम्मिलित परमाणु का उष्ण स्पर्श और तेजो रूप था, पर यदि वह अग्नि स्कन्ध से जुदा हो जाय तो उसका शीत स्पर्श तथा कृष्ण रूप हो सकता है । और यदि वह स्कन्ध ही भस्म बन जाय तो सभी परमाणुओं का रूप और स्पर्श आदि बदल सकता है ।'
उक्त कथन से एक निष्कर्ष यह निकलता है कि परमाणु के चार मूलभूत गुण-स्पर्श रस, गंध तथा वर्ण निश्चित हैं, लेकिन यह तय नहीं है कि अमुक परमाणु में स्पर्श गुण ठण्डा या गरम में से कौन-सा गुण उसके साथ होगा, या फिर वर्ण गुण - काला, नीला, लाल, पीला या सफेद में से कौन सा वर्ण किस समय उस परमाणु से संबद्ध होगा । इस व्याख्या से तो किसी परमाणु विशेष का कोई मूलभूत गुण ही नहीं रहा ।
तुलसी प्रज्ञा
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